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कमला कमलेश

ऊंट की बणा

ऊंड की बणा आई। ऊंट की बणा आई। गोरधन्यां का घर कै आगै गर्याला में खेलता टाबरां नै रोलो मचायो। रोलो सुणतांई पाड़ा में हसबलों सो माचग्यो। घर को काम धन्धो करती बायरां का ऊंट की बणा। ऊंट की बणा नरालो नांव सुणतांई कान ऊंचा हो ग्या। अर मन मेंजाणकारी लेबा की हुलस सी जागी। छोटी मोटी कोराण्यां भोराण्यां तो भण्ड्या हाथां सूं रोटी पोती, बरतन माजती। गोबर करती। कोई बुआरा खाड़ती पोल का क्वांडां नै खोल-खोलर चोमेर्या घूंघटां ने ऊंचा कर-कर न्हालबा लागगी। गेलै-गर्याला में आता-जाता मनख बी सुणर ठम खाग्या। जस्यां पाड़ा में कोई तमासा करबा हाला आया होवै। पण सगला देखबा हालां की आसा पै फाणी फर ग्यो। व्हां तो च्यार-पांच बायरां बीरा गाती आ री छी। बायरां बीरा गाती-गाती गोरधन्यां की ठोकर पै चढ़गी। लछमी कै ठोकर पै चढतांई गोरधन्यां का छोरा-छोरी लछमी का घाघरा कै लूम ग्या। लछमी नै बी छोरा-छोर्यां कै चूमा द्या। घणा लाड लडाया।
कसूमल रंग को लकीर्यां गोटा सूं कोर दब्यो, लूगड़ो धाणी की भांत को हरी मुगली हालो राता रंग को घाघरो, लप्पा-छप्पा की कांचली पेमली बोर जस्यो माथा पै बोर, तीन छोगां की बड़ी बड़ी जसी नाक में फैर्यां सूना की नथ, ललाट पै लगायां टकली, कांख मै गाठी पोटली दाब्यां लछमी असी रूपाली लागरी छी। जाणै गोरधन्यां का घर मैं साकक्सात लछमी फावणी आई होवै। लछमी की बायरां बी राता-पेला ओड्यां छी। लछमी कै आता ई गोरधन्यां का घर में उतावली माचगी। घर-आंगणा लपबा लाग ग्या। आंगणा कै गाबै-गाब चोक पुर ग्यो। अर तीजा पहैर की तो नैगण नै आड़ा-पाड़ा, ज्यात-ब्वार में बतीसी झेलबा को मरद-बायरां का कोका को लाम्बो कलकारो करद्यो कै बेगा आज्यो गोरधन्यां जी कै यां आछ्यो चोघड़्यो अबाणू ई छै।
नेगण का बलाबा के समचै ई ज्यात-ब्वार आड़ा-पाड़ा का मनख एकठा होग्या। बगत सारू बतीसी झेलबा को काम होबो सरू होग्यो। मलबो जुलबो होयो। लछमी भाई सूं बाथां भर-भरर मली। ब्याव का दन ओछा ई छा ई लेखै तड़कै ई जाबा की उतावली करी। आड़ा-पाड़ा में बी लछमी, बेटी का ब्याव का, पेला चांवल देबा गी।
फैली पचरोच लछमी कालूजी कै घरनै पेला चांवल देबा ाई। लछमी कै आतां ई सबनै घणी मान-मनवारी की। दरो बछार लछमी पठाणी लाड्यां पगां लागी। मलणो-भेटणो होयो ब्याव की बपातां चाली। लाड्यां कै ऊंट की बपणा का बूंक की जाणकारी जाणबा की घणा ताफड़ लागरी छी। ई लेखे गाबली लाडी लछमी सूं बूजबा लागी। क्यूंजी बपाई जी थांको बूंक ऊंट की बणा कस्यां पड्यो? लछमी नरी बार तांई तो बच्यारां का झामरझोला में उलझीरी। घणी बार पाचे लाम्बो नसास खांचर खैबा लागी, कांी क्हूं कोराणी, म्हैसूं तो ऊं हालो असूल होग्यो कै गैल्या ठाकर कहै पराणीबात। म्हूं सांच्याई ऊंट की ई बणा छूं. जस्या ाई बैण नै सासरा सूं फीर में लावै छै। उस्यां ई खेमो म्हनै म्हारा सासरा सूं लायो छो। दा गोरधन्यां का घर सूं तो म्हारो दूरा-दूरा तांई को बी सांदरो कोई नै छो। म्हूं तो आसमान की पटकी अर धरती की झेली छी। फीर में सुख देख्यो तो अस्यो देख्यो कै दूधा में कुलला करै छी। एक फूल चढ छो एक पूल उतरै छो। माई-बाप म्हारो मूंग बी मैलो न्है होबा दे छा। अब तो फीर में म्हारो नांव लेबां हालो कोई बी कोई नै। माई-बाप तो दस बरस की छी जदी ई मर ग्या। ब्याव कै बारा म्हीना पाछै एक भाई छो ऊ बी भगवान ने उठा ल्यो। अब तो लागती का में काका-बाबा छै। ज्ये आज क्हाल खुण का सगा होवै छै। आपणा की नमाले ज्योई घणां। बगत पै कापड़ो कांचली दे दे तो सरागम न्है तो कांई जोर छै। माई-बाप मर ग्या मान फलेलो ले ग्या। पण म्हारी तो सगली हूंस दा गोरधन्यां नै खाड़ दी बणा। सगोभाई बी कांई करैगो बडी छोरी का ब्याव में आछ्यो मायरो लेर ग्यो छो. दाई-धोबण नाण ढोलण यां तांई गोबर फाणी हाल्यां तगात कै तांई फैरावणी फैराई छै। चूंदडी पूरी एक हजार की लेग्यो छो। भाभी बी घणी सपातर चै। पूरो मान रखाणे छै। न्हैं तो आज-खाल तो सगी नणदां में बी बास आवै छै। जीमें म्हूं तो दा गोरधन्यां का ऊंट की बूणा छूं री कोराणी।
ऊंट की बणा होबा की बात हाल तांई बी खुलासा न्है होबा सुं कालूजी का बेटा की बूर फेर बोली। ज्ये बाइजी? थां ऊंट की बणा कस्या बण्यां? वा तो घोरखोदा की नांई लछमी कै पाछै ई पड़गी। अर सुणबा कै लेखै कान ऊंचा कररर गालां पै दोन्यूं हाथ धर्यां लछमी का मूंडा की आड़ी न्हाल बा लागगी। दो बायरां बातां करै तो ओरां, सूं कस्यां र्यो जावै। अतनी बार में तो मोहन्यां की बूं, माल्यां कै छीतर की माई, गोपाल जी की बणा सगली कालूजी की पोल में भेली होगी।
अरी कोराणी लछमी नै बात आगै सरकाई। म्हारो सासरो म्हांका गांव सूं दो कोस दूरै ई छै रोटी फीर में खावां तो फाणी सासरै आण प्यां। माई-बाप कै लडाली होबा सूं छाती आगै ई रखाणी। दूरै की सगायां हाला म्हारा भाईजी नै पाछी फेर दी। उछाव की मारी नो बरस की ई परणा दी। सासूजी कै बी घणो झबीको लाग्यो ज्ये बेगी ई सासरै बलाली। म्हारो तो लाडी-फूत्या खेलबा सूं ई मन न्है भरयो छो। अर भाग बी बेगा ई फूट ग्या जे माई-बाप बेगा ई मरग्या। भाई नै नानी लारां लेगी पण भगवान नै ऊबी न्है स्वायो।
सासार में सासूी मली तो घणी जल्लाद ससरा जी गंगा को धोरो। सासू जी सूं ऊंदरा सूं बल्ली डरपै जस्यां डरपै छै। सासूजी कै सामाे म्हारी बढ़ायां न्है करै पाड़ा ग्वाडा में तो बढायां करता फरै बणा! मन्नै तो चूल्हा चौका का लक्खण ई कोई नै छा। एक दिन रोटी पोबा लागी, पण रोटी गोल होबा को नांव ई नै लेरी छी। सासू जी कै आई झाल। ऊर करी न्हं पूर, म्हारै ढूंडी में बेलण की दो घमोड़ दी। फैली तो म्हूं बैलां की साल में जार घणी रोई। रोटी बी न्है खाई। अर हात फाणी को नांव लेर उठा लोट्या फीर नै भाग्याई।
लछमी आप बीती खैती जा री छी। अर आंख्या में भर्या गलेडू नै पल्ला सूं पूंछती जा री छी। छीतर की माई कै बी लछमी का गलेडू की लारां ई आंख्या नम होगी छी। लछमी बोली म्हारी काकी दन ढलक्यां आई बणा ऊ नै आतांई दो च्यार खरी-खोची ओर सुणा ई खैबा लागी-
भाग्या लूग्या म्हाकै य्हां खाईमी आया छो? म्हाकी बदनामी करावैगा? नांल पड़ावैगा म्हांको? म्हांकै तो काचो क्वारों साथ छै। छोरा-छोरी परणाणा छै। तड़कै थां का काकाजी की लेरां पाछा जा ज्यो।
काको बी काकी की बाती नै गटक-गटक सुणतो र्यो। एक बार बी सामै न्हैं बोल्यो। ऊँ दन सूं ई म्हारो मन फीर की आडी सूं बी आंथ ग्यो। कोई को बसवास नै र्यो। तड़कै भाग फाट्यां ई काक मनै म्हारै सासरै छोड़बा आ ग्यो।
अब तो बणा? सासरा में सगलो काम करती। सासू जी की आछी बरी सुणती। अर खदी बगत मलती तो दाई दड़ की भायल्यां में मन की गुड्‌डी खोलती। भायल्यां सूं मलबा की दो ई ठाम छी। ेक तो पणघट की बीवरी दूजी छाणी बलीता बीणबा को साथ। म्हारै फाणी लेबा जाबा को अर छाणा-बणीतो लेबा जाबा को घणो छावो छो। दोन्यूं ठामां पै म्हारै एक पंथ दो काज छा। म्हारी सासू नै तो खणावता ई जोड़ म्हली छी। के ब्राँदी रोड़ीर फाणी दोड़ी पम म्हूं वां की बात नै अंठ सुणती ऊंठी खाड देती। कांी करती फीर तो आंथ ई ग्यो छो। म्हारा सुख-दुख की बातां खुणसूं करती? खसम तो माई बाप की सीख में चालै चो। ऊ म्हारी भीड़ खाइमी बोलै?
ऊंदाला में एक दन गहूँ-चणा की लावण्यां पाछै भल्या खेतां में च्यार-पांच बर्या बर की साथण्यां मलर म्हां छाणा-बलीतो बीणबागी। झकझकती दफैरी की घोर तरकाल में छाणा बीणतां-बीणतां म्हानै पाणी की थरखा लागी। म्हानै छाणा-बलीतो अर ठांगलो तो एक ठाम पै छोड्या अर नीड़े ई पाणी सूं भर्या खेमजी का तलाव में फाणी पीबा चली ग्या। तलाव की पाल कै सायरै-सायरै लाग्या आमल्यां, नीमडयां, बूल्यां, पीपल का घणा घेर-घमेर रूंखडा छा।
म्हानै तलाब में पाणी प्यो। अर रूंखड़ा की छाया में साता लेबा बैठ ग्या। सासू-नणद की कुणसूं बेठर सगली ठलोकड्यां करती, गपोड़ा मारती, मसत्यां करती टेम खाड री छी। म्हांसूं थोड़ी सी छेटी बै बूल्यां की छाया में सात-आठ ऊंटडा बी साता लेर्या छा। ऊंटड़ा आंख्यां मींच्या बठ्या-बठ्या बागोलां करता जार्या छा।
बणा री! म्हारा म्हलडा में काणा कांई होयो, मनै तो असी रगल सूजी म्हारी कोराणी कै म्हूं तो उचकर एक ऊंटडा पै जा बैठी। अरी म्हारा बणा? मनै कांई याद छी कै म्हारी रगल ई म्हारै माथै बपता का बादला लेर आबा हाली छै। अर या बी कांी ठा छी कै बादल में सू आबा हाली बूंद की नांई भगवान म्हारै ऊपर अतनी करपा करैगो के न फीरी कै फीर ई सरज देगो। भाग कद फूटै छै। अर कद बणै छै। ऊं की माया अपरम्पार छै। सीपड़ी का मूंडा में पड़र जस्यां बूंद मोती बणी उस्यां ई म्हूं बी ऊंटडा की बणा बणगी। सगी बैण सूं बी स्वायो मान पाबा हाली। छोटी जी कू बू के आगै की गरती जाणबा की घणी थाला बेली लाग री छी। बोली ऊंटड़ा पै बैठबा पाछै कांई होयो बाईजी?
कांई होयो कोराणी? ऊंटड़ा पै बैछ तांई ऊंटडो तो बैठ्यो होग्यो अर बैछ्यो ई नै होयो गैले बी लाग ग्यो।
घणो कलेस करती छीतर की माई बोली अरै म्हारा बाईजी! थां तो डरप ग्या होवैगा?
अरी म्हारी भाभी? ऊंटडा को तो उछबो होयो ्‌र म्हारी मसकर्यां र रगल कपूर का डला की नांई उडगी। कालज्यो अंतग्या छड ग्यो। सांस की धूंकणी उछ-उठर पडबा लागगी। होठा पै पापड़ी आगी, आंख्यां फाटी की फाटी रैगी। अब कांई करूं कांई नै करूं म्हनै तो बार्रां पाड़बो सरू कर द्यो। ऊंटड़ो उचक-उचकर चालै जद मन्नै अस्यो लागै जाणै म्हारा जीव नै जमदूत लेर भाग र्यो छै।
म्हारा ऊंटड़ा कै चाल खड़तांई दूजा ऊंटड़ा बी ऊं की लेरा ई उठ-उठ-र चाल खड्या जस्यां रेल का डब्बा चालै छै।
अब तो म्हारी सगली साथण्यां का होस बी उड गया वे तो झांकती की झांकती रैगी। हाल तांई तो व्हांनै बसवास छो। कै ऊंटडा नै बठाण लेंगां ई लेखे सगली हाथां में ठांगला ल्यां ऊंटडां कै ओल्यूं-दोल्यूं जै-जै-जै करती जारी छी। पण ऊटड़ो तो बैठबा की ठौर गेले ई लाग ग्यो छो। वे सगली ऊं कै पाछै-पाछै चाल्यां जा री छी। थोड़ै छैटे तांई तो सगली गीर फैर वे तो सगली बावडडगी अर म्हूं ऊंटड़ा पै बैठी-बैठी खाला-नाला ज्यां ऊंटड़ो जावै, चालती री।
लछमी आगै खैलाब लागी म्हारी काकी? ऊंटड़ा को हलोल खा-खार चालबो अर म्हारो फूतलो भाग्यो-भाग्यो फरबो। म्हनै तो डर की मारी ऊंटड़ा की नाड़की की गाडी बाथ भरली जस्यां बान्दरी को बच्चो चपकै छै। करपती बी कांी अब तो मरणो कै जीवणो दोन्यूं में सूे एक छो। ऊंटड़ा तो म्हारी भाभी? गेले-गेले चालर दा गोरधन्यां कै बारणे आग्यो। जस्यां दा गोरधन्यां नैम्हारै तांई लेबा खनायो होवै। ऊंटड़ो तो बारणै आर ई बैठ ग्यो बणा? जस्यां खै र्यो होवै बणा उतरजा आपणो घर आग्यो। ऊंटड़ा को तो जमी पै बैठो होयो। अर म्हनै अस्यो लाग्यो जाणे म्हूँ सरग सूं पाछी बावड़्या ई। आखै गैले सगला देवता बालाजी, भैरूजी, फाबूजी सब याद आग्या छा। भगवान के घणी-घणी ढोकां दी। बीनती करी कै है भगवान मस्सू आज करी मस्सी खदी कोई सूं बी मत कर जे।
ऊंट कै दा गोरधन्यां कै बारणै आतांई अर म्हनै ऊंटड़ा पै बैठी देखर पाड़ा-ग्वाडा का लोग-लुगायां छोरा-छोरी आबा-जाबा हाला सगलां को मेलो लाग ग्यो। जस्यां बावल्यां गावं में ऊंट आयो होवै। म्हूं तो लाज्यां की मारी मर जा री छी म्हारी भाभी? लांबो घूंघटो खाडर एक आडी ऊबी होगी।
घर में सूं दादोर भाबी बी बारै आया वे बी म्हनै देखर झांकता का झांकतांई ई रैग्या कै यो कांई माजरो छै। पाछैा म्हारी झरती आंख्या अर मूंडा सूं सगला समाचार सुणर घणी राजी होया। अर म्हारै तांई नीरांत बंधाबा लाग ग्या। दा गोरधन्यों तो घणो राजी होयो। अर बोल्यो म्हारै तो घर बैठ्यां ई बहण आगी। म्हारी बहण तो भगवान नै बेगी ई सरग उतावरी कर दी छी। म्हारा खेमा नै म्हूं बहण भेलो कर द्यो। दादा नै खेमा का घणा पुट्ठा फटकार्या। संझया पड़गी छी। दादा नै भाभी सूं खी कै बणा नै बसवास बंधा अर रोटी फाणी ख्वा।
म्हूं भाभी नै घणी बसावीस रोठी ख्वाई ऊपरला घर में गोदड़ी बछा दी। रोटी खार म्हूं तो व्हाई गुड़कगी। फेर म्हनै तो याद ई कोई नै रात कद बीती।
दा गोरधन्या नै रात ई भाभी सूं खैद दी छी कै तड़कै बेगी ई रोटी पोदी ज्ये। लछमी नै ईकै सासरै म्हलबा जाऊंगो। ई का सासरा हाला के चन्ता होरी होगी।
दा गोरधन्यों तड़कै बेगो उछर म्हारै तांई सासरै पुगाबा को सारो सराजाम करर पोल में हुक्क भर ई र्यो छो कै म्हारा ससराजी नै भाग फाटतां-फाटतां दा गोरधन्यां की पोल का क्वांड आण भड़भडाया व्हां की लेरा दो आसामी म्हारा सासारा का म्हांका ई पाड़ा का छा। दा गोरधन्यां नै पोला का क्वांड खोल्या। रामा स्यामी होई। हुक्का-फाणी की मनवार होई। दा गोरधन्यां नै रात का समाचार सुणाया।
ससरा जी बोल्या कै मारा म्हाकै तो घ्रंधी हांड्यां ई काला पड़ ग्योङ रोट्यां की थड़्यां लाग री छै। पण कोई नै बी गास नै गरास्यो। या तो भाया धन्ना नै ऊंटड़ा की टाऊस थांकी ई लगाई ची। कै सात-आठ ऊट्यां तो बबूल्या का गोरधन जी कै ई छै। पण याबी तो चन्ता छी कै जनावर छै छोरी नै काणां-खां गेला में ई गरा दे। जनवार को कांई भरोसो मारा। या तो म्हांको तकदीर आछ्यो छो कै छोरी नै सही-सलामत आपका घर नै ले आयो।
दा गोरधन्यों बोल्यो कै मारा म्हारा ऊंट नै करी तो घणी ओखी छै। पण म्हार लेखै तो घणी आछी होई छै। बहण कै बना घणो अमलो छो. म्हूं तो आगला भोतर का संजोग मानू छूं म्हारा कै म्हनै लछमी जसी बहण ्‌स्यां मली। म्हारो खेमो म्हारी बहण नै फीर नै लर आ ग्यो। आज सूं ईं थां म्हारा ब्याई बण ग्या. लछमी म्हारी धरम की बहणठ चेम कै सर मारा म्हनै बीसर मत जाज्यो। बण बूगगो जस्यो कापड़ो कांचली लेर आपके दरवाजे हाजर होऊंगो। याई म्हारी आप सूं अरज छै।
ससरा जी को बोलारा को आंठ सुणर म्हूं बी पोल में लाबों घूंघटो लेर ऊबी-ऊबी व्हांकी बाता सुण री छी ससराजी नै देखर म्हारी आंख्या में गलेडू आग्या छा। पण दा गोरधन्या की बातां म्हारा कालज्या कै घणां ठंडा छांटा दे री छी। ससरा जी बी गाबा-गाबा में दा गोरधन्यां का हाथ जोडता जा र्या छा। खैता जा र्या छा कै मारा आपर जस्या भला मनशख ज्ये म्हानै अतनो मान दे र्या छो. यो म्हांको आछ्यो भाग छै म्हां आपनै कस्यां भूल सकां छां।
दन उग्यायो छो। दा गोरधन्यां नै भाभी कै तांई भलार खी। कै कावणा नै सीरावणा करा। अबाणू तो थारै गोडे होवै जसी कापडो कांचली खाड दे। लछमी नै बदा करैगा। उतावली कर। तावड़ो माथै चढर्यो छै।
भाभी नै माथा-माथा पै गोटो लाग्यो पेलो पोमचो, गोटो लागी टापेटा की कांचली, जींकी एक बांह पै लकीर्या गोटा को सात्यो मंड र्यो छो। फैराई अर म्हारा ससार जी कै तांई अंगोछो उडार म्हूं बदा करी।
सासरा में आता ई एक मन तो रावणी आई। सासजू को घणो डर लाग र्यो छो। एक मन नुओ फीर बणबा की घणी खुसी होरी छी। भाभी को उडायो पेलो पोमचो नै ओडर घणी सराती बी जा री छी।
म्हांकै आता ई पाड़ा-ग्वाड़ा का मनख, म्हार स्याथण्यां सगला समचार लेबा आया। म्हारै जाबा पाछै हांसूं कांई-कांई बीती। स्याथणया आमै-सामै ठल्ला लगा-लगार बतलाबा लागी। बणा? तू तो ऊंटड़ा पै बैठर चलीगी। म्हां नरी बार तांई तो तलावब की पाल पैई बैठ्यां री घरां आबा की हीमम्मत ई नै री। म्हांको तो हाता-पावां को जाणे जीव ई खड ग्यो। पण कांई करा स्याम पड़गी छी। घरनै तो आणो ई पड़्यो। दबी-घुसी छानै-छानै घरां नै आग्या। पण चन्ता या ई कै अब घरनै कांई खैंगां म्हांका मूंडा तो अस्या होग्या जाणे कोी नै सूई सूं सीव द्या होवै। बोल ई नै खडर्यो छो। फैली तो बारणै आता ई म्हांकी सासुवां नै वारणा ले ल्या। अतरी मोड़ी कस्यां आई? पण म्हांनै तो मून ई ले राखी छी। एकठ करी ली छी। कै आपण नै तो बोलणो ई कोई नै। मारे तो मार खा लेगां। पण। थोड़ी बार पाछै थारा सासूजी थारो हेरो करबा म्हांका घरां-घरां में ग्या। पण म्हां तो कोई नै बोल्या। फेर वां नै म्हां तुलसां होणा का घरनैे सगली भेली करी। सबकी सासूवां बी व्हां आगी। ओर भी मनख भेला होग्या। अब कांई करां च्यारों मेर म्हनै हंदेड़बा लाग ग्या। थारी सासू बोली कै बोलो तो सणी बड़ो? कांई क्वा-बावड़ी पटक आई कै नन्दी में धको आई। कै नार्-बगेवड़ा नै ख्वा आई बताओ तो सणी। थां। म्हारी बू नै खां मैल आई। म्हांकी सासुवा नै या ई बात दुसराई। छीता कै तो थारा सासूजी पाछै ही पड़ ग्या हाथां सूं झझोड-झझोडर पाछी हला घाली। छीतां नै बच्यार कर्यो कै जीवड़ा अब तो खैणो ई पड़ैगो। नै तो मार पड़बा की नौबत आगी। जद वा धीरां सेक बोली कै लछमी नै तो ऊंटड़ो ले ग्यो।
ऊंटडा को नांव लेता ई सगली अच अचागी। अर मूंडा पै हाथा लगार बोली कै ऊंटड़ो? ऊंटड़ो कस्यां लेग्यो। बणा? ऋीचां नै ,दसी हाच धणी धीरां-धीरां रोता-रोता बतांई म्हांकी तो आंख्या जमी गडी की गडी रैगी, म्हां तो बूत की नांई सबी ऊंबी छी।
ऊंटड़ा की बात सारा गांव में तुरत-फुरत फैलगी। थारा ससारजी कै ओल्यूं-दोल्यूं गणा आसामी भेला होग्या। ऊंटड़ां की खोज खबर सरू होई। तो जेठजी धन्या बोल्या के सात-आठ ऊंट्यां तो बंबूल्या का गोरधन जी कै ई छै। थारा ससरा जी तो तड़काऊ में चाल खड्या। वां की लेरां फेर जेठजी पन्ना जी अर मूल्या जी बी ग्या।
छीतां बोली बणा? तूं तो ऊंट की बणा बणर थारा फीर में चली गी। म्हांको तो खाबो-पीबो-जीबो घणो दूबर होग्यो पण ये तो होणी का जोग छै। जै होरर रै छै।

बायरां को सांग

म्हांका गांव में च्यार ंदर छै। दो चूना भाटा का। दो गारा का। पाको मन्दर एक तो स्यामजी को, गांव कै पैली पार बाण गंगा तीरा पै छै। दूजो मन्दर च्यार भजांजी को। मझ गांव में छै। मनदर आहरो बीधा भर्या छो। मनद्र की भींत्यां का भाटां पै भांत-भांत का छत्तीस करोड़ देवतां की मूरत्यां की कुराई होरी छै। ज्यानेै दैखर आंक्यां फाटी की फाटी ई रै जावै। स्यामी जी का मन्दर की भींत्यां का भायटा तो बड़ा-बड़ा अणघड़ चीकणा हथाई जस्या ई छै। अस्यो लागै छै कै मन्दर बणा बा हाला कारीगर सूदा-सादा ई होगा। पण मन्दर में सगली परगती की छटा सूं च्यार चांद लाग र्या छै। बाण गंगा की तीरां होबा, आंबा ज्यामूण्यां को मन्दर कै आस-पास घैर-घूमेर छाया कर्यां रखाण बो। फाणी को कल-कल, कल-कल गीत गाबो भगता नै आणन्द सूं सराबोर कर दे छै। दोनी काचा मन्दर बी गांव कै गाबे-गाब ई छै। च्यार भजांजी का मन्दर कै भड़ै पटवार घर। पटवा घर में पटवारी जी की रैवास। बारै बैटक में पटवारी जी को दफ्तर अर मांईनै घर गरस्ती।म्हाकां गांव का फतैलाल जी पटवारी। सभाव घणो आकरो करसा पटवारी जी की मारी थर-थर कांपबी करै छा। बायरां हाथ भर्यो को घूंघट लेर हाथ में जूत्यां लूगड़ा का पल्ला सूं ढांकर पटवा घर कै बारणै सूं नीसरै छी। छावै पटवारी जी दफ्तर में बैठ्या हो छावै नै होवै। यो तो बारणा को काण कायदो छो। कै पटेल पटवारी कै बारणै बायरां जूत्यां फर्यां नै नीसरै यो तो व्हांका बाइणा को मान रखाणनो होवै छो। पटेल हीरा लाल जी को सभाव व्हांसू बी स्वायो माधोजी बाणयां की छोरी चमेली को ब्याव रूपयो। गांव छोटो छो ओछी बस्ती मां को पेट/ज्यात-बरादरी सुख-दुख में ब्याव-सावा एक दूसरा कै आमै-सामै सबी भेला होवै, आवै-जावै। ई सारू चमेल का ब्याव में गांव की बायरां लाड्यां गाबा कै लेखै भेली होवै ई हौवे बायरां को मलबो तो ओसर-मोसर सूं ई होवै छै। अर वां ई व्हांका मन की खुलांद खडै छै। बर्याबर की दांई-दड़ की में ई तो मन बातां-मस्त्यां, मसकर्यां दुख-सुखी मन की गुड्यां असी ठौर पै ई तो खूटै छै।
एक दन सगली लुगायं माधोजी बाण्यां के य्हां लाड्यां गाबा भेली होई। लाड्यां गायां पाछै मदनजी पंडा की माई का मन में घणो आकल कूटो भर्यो छो। ऊ नै काढबा कै लेखै वा बोली घ्भाया यो पटवारी तो घणो बरो छैङ आज दफैरी में म्हूं फाणी भरबा बीवरी पै जारी छी। तो पटवारी घणो जोरूं सूं दूंक र्यो छो। म्हारो तो सुणर ई कालज्यो बैठ ग्यो. वां माल्यां कै रूजी को बोलारो भी सुणाई दे र्यो छो वै खै र्या छा-हुकम म्हारी बात बी तो सुणों। पण पटवारी तो धोवीत में ई नै भार्यो छो। सुणर धाकड़ा कै पारबती की माई बोली पटेल कांई कम छै। करसा भापड़ा वां की पोल में जूत्यां में ऊकडा बैठ्या रै छै। पटेल का बाज पंखा की जोर खांचता ई रै छै। जस्यां पटवारी की खांचे छै। अतना में बाणा कै पचोलण जी बोली कै य्हां का दाजी बडा अफसर आवै जद तो यां की पूंग्यां बंन्द हो जावै छै। जीब तालवै छैंट जावै छै। कोट का गलां का बटण बन्द जावै छै। माथा पै टोप्यां स्यापा बंध जावै छै। मदन पंडा की माई बोली, कै एक दन आपण बी यां की छोत उतारां। यां का आकरा पण की आग नै बझावां ई बझावां पचोलण जी बोल्या हां नै तो कांई छै। कांई म्हांका मरदां कै इज्जत ई कोई नै कै। ज्ये व्हानै दकाल-दकाल हात जुडायां का जुडायां ई रै छै। आपण बी एक दन थाणादार अर अरदली को सपाई बण र य्हांनै डरपावां ई सणी. सगली बायरां का कान नुआ मता नै सुणबा में ऊंचा हो र्या छा। सगली एक बाणी में बोल ई उठी कै मतो घणो आछ्यो छै। फेर कांई छै लुगाया ई तो ठहरी तरया हट के आगै खुणकी चालै ज्ये बच्यार ले ऊं तो करै ई करै।
मता की जुगत भुडाबो सूर होग्यो। सांग कै लेखै बोराजी की घोड़ी मंगाई/पारीकां कै मोहन को कमजीन-पेन्ट-टोप मंगायो। राठ्यां कै कसना जी की सपाई कै पगां में बांधबा कै लेखे पट्टयाँ मंगाई। थाणादार जी कै लेखै जूता-मौजा को अन्दज्याम र्यो। सपाई कै लेखै मूल्या की असकाउट की डरेस कबाड़ी। घट्यो बद्यो सामान दमा-दमी सूं अंठी-ऊंठी सूं मंगार मंगलवार हटवाड़ा के दन ऊ त्यारी कर ली झूंझरक्यो पड़्यां सांग की त्यारी सरू होगी। जी सूं बायरां पछाण बा में नै आवै। स्याठ बरस की मदन पंडा की माई थाणादार पेंतालास कै आवै डावै ऊर कद-काठी लांबी-चौडी सपाई बणर थाणादर जी की घोड़ी की लगाम पकडर आगे होगी। सांग बणबा की ठाम पटवार घर की पछीत कै भडवां छोरा-छोर्यां को मन्दरसो। सांग की सवारी पटवार घर कै बारणै आगी। अर बारणा कै समाै-साम ऊंबी कर दी। वारी कै लारां लाग्या छोरा-छोर्यां सूं थाणादार जी अकड़र बोल्या पटवारी को जल्दी बुलाओ। उणसे क्हैणा थाणादारजी आया है। उणके खाणए-पीणे का अन्दजाम करो। बारणा पै हांक हेलो सुणर रोटी खाता पटवारी जी रोटी की छाली नै सरकार बारै आग्या। पटवारी जी कै तांई थाणादार जी की घोडी की लगाम पकड्यां सपाई नै सलूट मार्यो। थाणादार जी पटवारी जी सूं बोल्या, महारा खाणै-पीणै सोण का अन्तजम्या करो। अर सपाई सूं क्ही कै बेगा चालो पेटली जी से बी मिलना छै। पटवारी जी हाथ जोड्यां हक्का-बक्का त्यारी करबा को बच्यार करता र्या। थाणादार जी की घोडी आगै चाल खड़ी। अर पयटेल हीरालला जी के बारणै जार ऊंबी होगी। संजोग सूं पटेल जी बारैई ऊंबा छा। दो-च्यार बात वां दोहराई जे पटवारी जी के य्हां खी ची। थाणादार जी नै देखता ई पटेल की बी फूंक सरकगी। दोनी जुड्या हात हालबा लाग ग्या। थाणादार जी सूं बोल्या हुकम करसां नै अबाणू खनाऊ छूं। आपको भोजक को सोबा को अन्दज्याम अबाणू थोडी सीक बार में हो ज्यागो। ज्यां तांई आप पोल में बराजो। थाणादार बणी मनद पंडा की माई नै ज्यां ताई सपाई बणी पचोलण जी सूं आगै चालबा को हुकम दे द्यो छो।
सांग की सवारी पाछी मंदरसा में बावड्याई भेली होई लुगायां कै हांस्या की मारी पेट में मरोड़ा चालबा लाग ग्या छोरी-चोरी थाणादार जी की नकल खाडबा लाग ग्या। तड़को होता ई रात का लुगायां का सांग की चरचा सगलां गांव में आग की नांई फैलगी। लोगां नै लुगाया का सांग की घणी बडायां करी। पटेल जी अर पटवारी तो सरम सूं पाणी-पाणी हो ग्या छा। वां की गरमी धूल चाटबा लाग गी छी। पटवारीजी तो लांबी छुट्यां लेर वां का सहर में ई चल्या गया। पाछै वां का सभाव में घणी नरमी आगी छी।
गांव की बायरां भोली तो होवै छै। पण मनख्यां नै गेलै लगाबा कै लेखे बी मरदां सूं पाछै कोई नै। जी के परमाण म्हांका गांव की बायरां छी। स्वाभिमान का दिवला सूं आगली पीढी नै उजास बताबा हाली।

करण दान

मन घणो भोभम मूतै छै। उलाला मारै छै। दन-रात आठूं फैर। घड़ी साक बी छानो नै रै। नंदरा में बी भाग्यो-भाग्यो फरै छ। ओल्यां का समंदर में दूजी ओल्यूं ला-लार भेली करतो रै छै।
ओल्यूं बी भांत-भांत की। कोई खाटी, कोई मीठी, कोई चरकी, कोई कड़ी जैर। कड़ी तूमडी परा को मनख बी करमटा पै तीन सकोटा पटकर आंख्या नै मचकाता अपणा आप सूंई मूंडो मरोड़-मरोड़र बातां करै। कोई ओल्यूं असी मीठी गूंदकडी का रस ज्यूं जी ने रात-दन पीता रैबा को मन करै। पेट में भावै नै पण मन नै भरै। घूमर दे-देर मनडा नै मीठो कर्यां रै। चरपरी ओल्यूं फोरो-पातलो फेरो देर भाग जावै छै। कोई ओलयू असी बी होवै छै ज्ये कालज्या का कराड़ा पै बच्यारां की रील घूमबा लाग ज्या छै समीना की नांई/सनीमा में ेक हीरो बी होवै छै म्हनै बी खदी-खदी सनीमा का हीरो की याद घणै ऊं डै तांई हो जावै की।
पैदास गांव की। गांव का छोरा-छोरी मंदरसा की फोरी पढाई। संगी-साथी। छोला गांवड़ेल। अस्या गरीब बी ज्यांका डीलड़ा पै लीरड़ा लटक्या रै। थोड़ा गणा साधारण परवारां का, आटा में लूण ज्यूं खाता-पीता बी छा। पचमेल खीचड़ी ज्यूं।म्हांकी पाठशाला लछमीनाथ जी का मंदर की तबारी। ज्यां भगतां की आव-जाव अर घंटा की गरणाट। ई सब कै गाबै म्हांकी पढाई चालै छी। खदी-खदी परसाद खाबा को ओसर बी आवै छो। यूं तो सगली पाठसालांन में पढाई सूं फैली पराथना होवै ई छी। पण म्हां अस्यां भागसाली छा कै पारथना कै पाछै सद्रूप भगवान का दरसण करर पढाई सरू करै छा। आज की पढ़ाई का तामझाम सूं कोसां दूरै नै डरेस की पाबन्दी अर नै कत्याबां को पांच सेर को बोझ। अर नै नुवा-नुवा बस्तां की चमक-दमक। म्हांकी डरेस-सूदी-सादी छी। माथा सब छोरां का घोटम-घोट चकलोड्यां। जी पै ज्ञान को एण्टीनो छोटी अर ऊंमे लागी गांठ। डील पै लत्ता जस्या घर में होवै। चड्डी, पोत्यो, पजामो, आधो ढक्यो, आंधो उघाड़ो डील। बस्तो बी गांधी बाब का बच्यारां ज्यो। भाईजी की फाटी धोवती का च्यार खूंटया नातणा सा बटका कै एक मूंडा पै बंध्यो लच्छो कै सूतली की गांठ लगाई अर बस्तो त्यार। पारी बरचणो अर दो पोथ्यां। पण तखती लाबपो भूल जावां तो माटसाब को काल्यो (डंडो) त्यार मलतो।
माटसाब की डरेस बी देसकी जसी सादगी अर ऊंचा बच्यारां की प्रतीक। बगला की ज्योत धोलो फबूक कुडतो। गोडा सूं आठ आंगल नीचे धोलो पंज्यो। कांख में तीन हात को कालो डंडो माथो घोटम-घोट। चोटी को आहरो घणो भारी। ज्ञान-गरद में घणा ऊंडा। म्हांको माथो तो गाव का नक्सा बणा बा में ई चक्कर भोली खा ज्या छो। पण माटसाब सारा जगत कै चक्कर लागर बावड्यावै छा। म्हांतो सैकड़ा पैई आंगल्यां का पोर्या टचकारता रै छा। पण माटसाब लाखां-करोड़ां का हस्याब जादू का तमासा हालां की नाई झट-पट कर दे छा। म्हारो बालक मन बच्यारां का भंवर जाल में उलझ जातो कै माटसाब का माथ में जन्तर-मन्तर करबा हालो तो नै बैठ्यो छै। माटसाब जतना पढाबा में हुस्यारा छा उतना ई मारबा में भी करड़ा छा। हेत करै तो असयो कै भाीजी बी फीका लागै कलास को नतीजो देता अस्यो कै पन्दर् में सूं पनदरा पास च्यार अब्बल, दस पूजा एक तीजां आवै। अब्बल की गणती में म्हूं बी छो। भाई जी नै ऊंची पढ़ाई करबा सहर में खनायो। सहर का मननख, सहर खका छोरा, सहर की जन्दग्यानी म्हारै तो रास नै ाई। व्हानै देख तांई म्हारो तो माथो भरणा ग्यो। सडक्यां पै घूंघाडा फांकती टरकां। फोरी बडी मोटरां अर फटफट्यां का धूंघाड़ा की बास की मारी म्हारो तो माथो सड़ग्यो। तीन दन तांई वां की बास की मारी उलट्यां अर उलट्यां की मारी म्हारो तो कालज्यो ई उथल ग्यो। मन्दरसा में ग्यो तो वां बी म्हूं बजूको बणग्यो। खां तो म्हूं सूंदो-सादो चकलोडी जस्या माथा हालो। पंज्यो अर बंडी फैर्यां नपट गांवडैल छोरो। अर खां आताल-पाताल छोर्यां जस्यां बाल, चोर्या छाब छबूल्या हाला लत्ता फैर्यां सटर-पटर बोलता सहर का छोरा।
सगला की आंख्यां म्हरा तांई न्हालबा लागगी। सहर का माटसाब अर म्हांका माटसाब में बी घणो आंतरो छो। म्हांका माटसाब तो हारी बेमारी में एक बर्यां तो घरां संभाल बूजबा आवै ई आवै।
सहर में जाता ई म्हारै तीन दन तांई बुखार आयो पण नै तो माटसाब नै संभाल बूझी अर नै एक बी भायलो मलबा आयो।ताव में पड्या नै भोलो-भालो धन्यों-पन्यो, मोत्यो मंगल्यो घणो याद आयो। चोखो तो तांई दूजै दन म्हूं तो गांव में भाग्यायो। भाईजी जीजी कै आगै घणो रोयो। अर सहर में पढबा कै लेखै समून ई नाड़की हला दी भाई, जीजी नै घणो समझायो। जद नठा जार पाछो सहर मे बढबा आयो। धन्या पन्या, मोत्या मंगला सूं बाथां भर-भरर मल्यो। भाईजी जीजी, माटसाब का आसीरवादां सूं अब कै बी अबल्ल आयो। फेर तो सहर का छोरा म्हारै ओल्यूं-दोल्यूं घेरो लगाबा लाग ग्या। म्हूं बी म्हारी अकक्ल मुजब व्हानै सायरो देबा लगा ग्यो। दो च्यार छोरा तो म्हारा आच्या मुरीद बण ग्या। म्हारी लालां की लारां आगै की कलासां में बी अबब्ल की लेण में चढ ग्या।
म्हारी पढ़ाई का आखरी बरस में समाज सुधार को आन्दोलन घणा जोरां सूं चाल्यो। ठौर-ठौर जलसा अर ज्ञानी मनक्यां का भाशण परच्या सरू होग्या। घरां-घरां जार समझाबा हाला मनख्यां को मेलो लाग ग्यो। कै बलकां नै फोरी ऊमर में मत परणाओ। डायजो लेबो-देबो आछ्यो कोई नै, ई सूं गरीब मनख्यां को मरण छै। गरीबां की छोर्यां क्वांरी रै ज्या छै।
जादू-टूणा में बसवास मत करो, डाकण-भूत मन की संक्या छै। ये सब धूर्त-चालक मनख्यां की चालां छै. अस्यां लोग-लुगायां नै समझाता फरता।
काला गोडे धोलो बैठे तो रंग नै तो बरण तो फेरै ई छै। जस्या में जस्यो बैठे तो उस्या ई लक्खण लेर उठै छै। बडा-बूढा खै ग्या कै संगत सार अनेक फल। या खैणावत म्हं पै बी लागू होगी।
समाज सुधार को रंग म्हारै बी लाग ग्यो। लम्हां सगला भायलां नै मनसूबो कर्यो कै आपण बी एक-एक गांव समाज सुधारबा कै लेखै झोल्यां ले ल्यां। रंग चढ्यो तो अस्यो चढ़यो कै पढ-गुणर बी करत कमाई ब्याव-सादी सब भूल ग्या अर समाज सुधारबा का गेला पै लाग ग्या। माई ढलक-ढलक रोवै, बाप दूंक-दूंकर पडै। पण म्हां पै कोई असर नै होयो। रंग तो रंग ई चै। जीं कै लाग जावै, मर्यां ई माचो ले छै। ऊंची नौकरी कै लात मार दी अर ब्याव-सादी को बच्यार तजर एक गांव झोल्यां लैई ल्यो। सहर में रैबा सूं म्हारी रैण-गतमें बी फरक आग्यो बोल-चाल में बी सहर की बाल भरगी छी। सहर में पढबा ग्यो जद बी मन्दर सा में बजूको बण्यो छा। तो आज ई फ्हाड़ी गांव में बी बजूको बणबा की नौबत आगी। छोरा-छोरी, लुगायां म्हारी आडी झांकर झांकता ई रै ता। छूकता छोरा-छोरी तो म्हारी आडी झांकर आंख्यां मीचरर महतार्यां की छात्यां सूं चपक जाता। पछाण करबा में ई दो-च्यार दन तो म्हारा अस्यां ई खड ग्या।
गांव में आर कसी समज-बूज सूं काम करणो छै ई बच्यार मैं म्हूं रात-दन लाग्यो रैतो। गेलो खाडतो रै तो। आकर में एक गेलो हात में आयो कै गांव हाला नै आपणा बणाबा सारू हांका बालकां नै पढाणो चाहि ज्ये। गाबै-गाबै गांव में मिटिगां अर जलसा ककर लोग-दण्यां नै समझाता बी रैंगा। ई लेखे म्हूं दो-च्यार समझवार लोगा सूं मल्यो-जुड्यो। म्हारा समझाबा को दो-च्यार जणा पै असर बी पड्‌यो। हालांकि फैली तो लोग पढाबा की ठांम तजबीज करूं तो गांव हाला डंक पै ई नै बैठबा द्ये। आखर में नन्दी कै गेलै हनुमान जी की छतरी पानै पड़ी। छतरी छोटी ई छी। पण छतरी के नीडे ज्यामूण्यां आंबा का घणा रूंखड़ा छा ज्यांकी घेर-घुमेर छाया सांवटी छी । एक आडी नन्दी बह री छी। तो दूसरी आडी बनखंडी की राड़ी छी। म्हनै तो वा ठां घणी ई आछी लागी। ई लेखै पढाबा को झांज्यो ई ठाम पै ई रोप द्यो। सं चतरा चौछ कै दन म्हूरत करर मन्दरसो चालू कर द्यो। सरू दन तो पांच छोरा पढबा आया। दो चौधरी जी का, दो वां का काक का बेटा का एक मोहन्यां बाण्यां को। पाछै मदरसा में छोरांन को मेलो लागबा लाग ग्य। अर छतरी को घेरो कम पड़ बा लाग ग्यो। छोरांने देख-देखर म्हरला को कंवल-कंवल बी उमगा लाग ग्यो।
म्हारी खुसी का ओर बी घणा कारण छा एक तो समजा सुधराबा को गेलो पाग्यो। दूजो गांव का भोला-भोला मनख्यां कै गाबै रैबा को मोको मलबो। तीसरो कुदरता का करतब अतनी नीड़ै सूं देखबा को आणंद लेबो। गांव का लोगां सूं जाणी कै गांव सूं बारा कोसकै चेटी पै बनखंडी में चतरकूट की ठाम छै। ज्यां रामजी नै बनवास की बगत बासो बस्यो छो। ्‌त्री मुनी को आसरम, महसती अनुसूयाको आसरम बी वाँ ई छै। थोड़ी सीक पै ई भारदवाज मुनी को आश्रम छै। या जाणर घणी खुसी होई। मन दो-दो बांस उछालां मारबा लाग ग्यो। भगवान रामचंद्र जी की ख्याणी सुरतां आगी। बच्यारा का समनन्द में मनड़ो लूरां लेबा लाग ग्यो। म्हारा मनडा में बच्यार आता कै ज्ञानी-ध्यानी ऋषि मुनि लोग घरो बनखण्डी में कुटिया खाइमी बणावै छै। सहर की बास सूं वां को भेजो सड़ तो होवैगो। ध्यान भंग होतो होवैगो। ऋषि मुनी की तो बात ई अलादी छै। बनखण्डी कै नीड़ै रैबा हाला मनख बी तो ऋषि-मुन्यां सूं कांई कम होवै छै।
गंगा जस्या पवित्तर अर गऊ जस्या भोला-भाला उजसा मन का लोग छल-छदम् सूं कोसां दूरै संतोस का समंदर में न्हाबा डाला, संकर जसी लंगोटी हाला, घांस-पूस की झूपड़्यां में जमारो काटबा हालां में म्हारो मन घणो मरतो। पाणी भरबा जाबा हाली आती-जाती बायरां नैम्हूं पहरां तांई न्हलाब करतो। नरी बायरां सूं त्तो म्हारी जाण पछाणी बी होगी छी। बायरां खांकां में काला-राता घड़ा ल्यां कोई साबलत डील ढकी, कोई आधी उघाड़ी, कोई झराण होई नांदरी हाली, कोई चमकणो लूगड़ो ओढ्यां हथणी जसी मतवाली चाल हाली। कोई चन्दरमा जस्यां मूंडा पै काला गोदणा सूं गाला, करमं पै चन्दरमा-तारां का दरबार सजायां, कोई गोरी-काली कलायां पै दादर-मोर पपीया को नांच गोदणा हाली। कोई सगली पींड्यां पै पसब-पानड़ा अर छात्यां पै अनैन भांत्यां गोदणा सूं लदी। कथीर का कहणा-गांठां हाथां-पावां में झमकायां रैती। आपणा हाथां सू बण्यां चीलां का बीछू-मांदल्यां की छब उकैर्यां आछ्या-आछ्या सुनारा की कला नै बी बणावट में मात देता हार-सांकला गला में फैर्यां होती। प्रकृति की गोद को सुख लेती घणी बायरां आपण-हाथां सूं बणाया पसबा का हांर गजरा फैर्यां इन्दर लोक की अफसरा सी लागती। म्हूं फ्हैरां तांई वां नै ऊबो-ऊंबो न्हालतो रैतो। वे बी खदी छोरां नै पढ़ता देखती खदी म्हारी नजर्यां नै पकड़ती नन्दी पै जाती, तीरां घड़ो भरर धरती, पाछै हाथ-पगां कै रगड़का लगाती। मूंडा पै फाणी को छड़काव लगाती। फेर उजला होया हाथां-पावां का गोदणा नै नरखती, बातां का पचेटा मारती। धीरां-धीरां छूमली माथै घरर घड़ो उचती फेर घड़ा पै घड़ो धरती। जद मनै अस्यो लातो जाणे म्हूं सरकस मे होबा हालो छोर्या को करतब देख र्यो छूं। ऊं बगत म्हारो मन आकल-बालक हो जाते। सांस रूक जाती। बच्यारतो घड़ो अब गर्यो-अब गर्यो। जद घड़ा पै घड़ो उच लेती तो म्हारा मन नै घणी साता आती। वे दूसरो घडो हाठा की तीन आंगल्यां सू उचती जद तांई सारो झुंड घड़ा नै उच ले वां तांई सगरी बायरां माथान धर्या घड़ा नै लेर ऊबी रैती। नरी बायरां माथान् पै घड़ा पै घड़ा नै धरयां फ्हैरां तांी बातां न मै असी रम जाती। जदस्यां वा का माथा पै पसबां की पोटल्यां धरी छै।
म्हूं बी छोरां नै पढ़ातो-पढातो बसरमा लेतो वां का करतबां का आणन्द में डूब जातो। जद बायरां घंरानै चली जाती तो छोरान् पढाबा में मन लागतो।
म्हारी पाठसाला का छोरी बी लछमी का पूत कोई नै छा। वां आधा आधा ढक्या, आधा पोत्यां पंज्या हाला छा। अर वां में एक छोरो तो कोपनी को मालक ई छो। दूसरा छोरान् नै तो बारा मीना में नुवा लत्ता का दरसण हबी हो जावै छो। पण कोपनी धारी करणदान तो म्हारी मौजदूगी में एक लत्तो बी नुवो नै मल्यो छो।
सगलां छोरां कै पाछै घुस्यो-दब्यो बैठ्यो करण दान! म्हूं सवाल बोलर नै नमटूंजी पहली तो पाटी म्हारै सामै कर देतो। रा याद करबा ई देतो तो सगला छोरां सूं पह्ली समून पाठ जुबानी बोल सुणा देतां। म्हूं बच्यार करतो कै करण दान का भेजा में बी म्हांका माटसाब की नांई जन्तर-मन्तर का तमासा बताबा हालो जादू बैठ्यो छै कै।
एक दन म्हारो नीड़े का कस्बा हमीर परा में जाबो होयो। पान की दूकान पै पान खाबा की पराणी टेवा सारू म्हूं पान खाबा जा फूग्यो और दूकान पै पड्यो अखबार का पाना नै ऊंदा-सूंदा करबा लाग्यो। तो एक ठाम पै पढतांी म्हारो भेजो चकरा ग्यो। कालज्यो समून कांप ग्यो। पाना में मंड रीछी कै दक्षिणी भारत में भंयकर बाढ़ तबाही हजारों मरे, लाखों बेघर हुए। करोड़ो का जन-धन का नुक्सान सगला देस का मनख्यां सूं सायरा की अरदास करी छी। परदेसां बी सायरा सारू रूपया-पीसा दवाई-दारू लता-कपड़ा आबा का एलान मंड र्या छा।
दन आंथ्यां म्हूं गाव में आयो। पण ऊं रात म्हारी आंख्या में तो नींद ई कोई नै। सारी रात बच्यार आता र्या। तड़कै मन्दरसा पराथना करबा कै पाछै छोरां के तांई क्हाल का अखबार का समचारा सुणाया। अर बालकां सूं खी, कै आपण बी बण पूगै जै सायरो लगार मौत की देहली पै बैठ्या मनख्यां ई बचाबा कै लेखै ई महाजग्ग में दान की आहूती द्यां।
छोरां का घरां की हालत सकीमी में तो फह्ली ई छी। पण म्हारी बात सुणतांई छोरा घरां नै भाग ग्या। जी सूं जतनो बण पूग्यो पावती-आठ आना सूं लेर रूपया-दो रूपया तांई बी छोरा पीसा लाया। पण शंकर जसी लंगोट ी हालो करण दान मै घरां जातो देखर म्हनै घणी हांसी ाई। बच्यार आयो कै कोपनी को मालक यो छोरो जी नै आपू ई दान की चाहन्यां छै। कांई लार देगो। म्हनै हांको बी पाड्यो पण करणदान तो आपणी धुन में ई भाग्यो जा र्यो चो। ऊं तो गंगाजी अमगै जस्यां अभगतो भाग्यो जा र्यो छ। थोड़ी देर पाछै हात की मुट्ठी गाढ़ी बांदा पसीना में हांपतो-हांपतो म्हारै आगै ऊंबो होग्यो। अर हर्या रंग को कड़क नुवोझक्क पांच को नोट मुट्ठी खोलर म्हारै सामै कर दी। म्हूं खदी नोट ई, खदी नीची नाड़ कर्यां ऊबा करण दान ई देखबा लाग ग्यो। करण दान का हाथ में सूं मनै नोट तो ले ल्यो। पण मन में संक्या आई कै घरनै सूं चोरी तो नै कर लायो। ई गरीब करणदान कै गोड़े यो पांच को नोट खांसूं आयो? जे आपणा डील पै खदी नुवो लत्तो मोल लेर नै फैर सकै ऊ हाथ्यूं हाथ पांच को नोट कस्यां ला सकै छै? उस्यां म्हारा मन में करण दान पै भरोसो छो। पण मन की संक्यां मेटबा कै लेखै पूछणो पड्यो। करण दान ये पांच रूपया तूं खांस सूं लायो? घरनै सूं चोरी तो नै करी? चोरी को नांव लेता ई करण दान की आंख्याम में गलेडू आग्या। ऊ बोल्यो माटसाब म्हूं चोरी करर पूया नै लाये। खाल म्हारी जीजी अर भाईजी म्हारी मावसी कै ग्या छा। म्हावीर मावसी की छोरी को ब्याव छै। म्हनै भी लारां जाबा की घणी अड़ी करी, पण म्हारी भाीजी नै खी कै पढ़-गुणर मनख बण ज्यागो तो आगै सुख पावैगो। जी सूं म्हार ाभाई जी अर जीजी म्हनै घर नै ई मैल ग्या. घर में चून कोई नै छो, जी लेखे म्हारी जीजी म्हारै तांई पांच रूपया देगी छी। माटसाब ये वेई रूपया छा। म्हनै कोई की बी चोरी नै करी। भल्याई म्हारी जीजी पेलै दन आवैगी जद थां ऊं सूं बूज लीज्योे।
सांच नै कांई आंच करणदान का म्हैलडी सूं खडी बाणी ई बात को परणाम छी। करण दान नै तो परणाम दे द्यो। पण म्हारा म्हैलडी में ऊंडे तांई एक घाव होग्यो। मन कै साता को फोयो लगाबा सारू बूजी करण दान अब तू रोटी बना कांई खाबैगो? करण दान बोल्यो माटसोब दो टक को चून तो घड़ा में घर्यो छै तीन टक रोटी नै खाऊंगो तो म्हारै कांई फरक पड़ेगो। पण मरता मनख्यां कै बूंद बर्यां बर सायरो तो लाग ज्यागो। म्हूं बोल्यो करण दान तीन टक तांई तूं बना रोटी खायां कस्यां रैगो? तकण जान होस्‌ओ-माटसाब तीन-तीन च्यार-च्यार टक तो म्हनै बना रोटी खायां नरी बार खाड्या छै। करण दान का दान में द्या पांच रूपया आज बी म्हारा म्हैलाडी में ऊंडा हलोला खावै छैै।

पटेल हीरा लाल जी

लांबा पूरा। आकरा सभाव का। छणगादार मूठड़ा को स्यापो। अकलंगी धोवती। पूरी बायां की कमजी। चरड़-मरड़ करती चमकणी जूत्यां कटारदार मूंछ्यां। लांबी नाक। चोड़ौ ललाट। ओले पाड़ै दकालै तो पैले पाड़ै गरणावै। अस्यां छा म्हांका गांव का पटेल हीरालाल जी। दो-दो लुगायां का खसम। पांच छोर्या अर एक छोरा का बाप।
पटेल हीरालाल जी की प्हलांत पटेलण कै एक कै पाछै एक पांच छोर्यां होगी। हात की थाली हात में ई रै जाती। पण थाली नै बहाजती। बेटा को नांव सुणबा में बायर का कान ऊंचा हो जाता। पण आंख्या में आसूं ई मलता। पाछली ई पाछली पांचवी छोरी होता ई तो पटेलण घणी नरास होगी।
एक दन नढाल होरर पटेल जी सूं बोली, कै थां अब तो दूजो ब्याव कर ल्यौ। नै तो बंस उगट जावैगी। आपण पाणी देबा हाला बना कस्यां तरैंगां, मूंडा की राख कुण खाड़गो? छोर्यां भाई बना अमली लागगी, जसी जागात तो अतनी छै। पण खाबा हाला बना सब बरथा छै। बेयटा बना गया जी में आपणा पंड-परधान कुण करैगो? लोक परलोक में बेटा बना उद्धार कोईनै होवे।
पण पटेल जी बहरा मनख की नांई बना हां हूंकारो द्यां सुणता र्या। वां कै पटेलण जी की सहाल गलै न उतरी। अब तो पटेलण जी नै तरया हट को गेलो ई पकड़ल्यो। खाता-बोता बगत-बेबगत पटेल जी सूं दूयो ब्यावल करबा को गीत सरू करबा लाग ग्या। पटेल जी ई कान सूं सुणर एक कान सूं खाडबां मेे पाका हो ग्या। आखर मं ऊमर का ढलता पड़ाव में बेटा को बाप बणबा की हलोल नै पटेल जी को म्हरलो हला ई द्यो। एक दन पटेल जी नै पटेलण जी कै तांई उथेलो दे ईद्यो। कै थारी राजी में राजी थनै सूजो जस्यां ई कर। म्हूं ब्यावल करबा कै लेखै त्यार छूं।
पटेल जी की हामल सुण तांई पटेलण जी नै हाली खनार पन्यो नांई तुरत बलायो। हांका कै समचै नांई आग्यो छोरी देखर पटेलजी कै लेखै सगपण की बात करणी छै। पटेलण जी ने नेगी आछ्या सुवा की नांई पढायो। चातरूक पन्यां कै सगरी बात बेगी ई समज में आगी। पन्यों कांधा पै धोवीत पटकर मोट्यार, छोरी हेरबा ठक्का कीठामा पूग्यो। फरता-फरता एक ठाम बात सामी बी आई। बाप कै तो बात सोला आना आसै आगी, पण माई कै मनमें नै भाई। लोग नै लुगाई घणी समझाई कै च्यार हलां की जोत छै। छोरी दूधां में कुरला करैगी। झरोकां में सूं हुकम उडावेगी गांव को पटेल छै। सारा चौखला में आछ्यो माथो बंध र्यो छै। री ऊमर की बात तो बाई कै डोडो बर खटाबै छै।
बधाता का लेख टाल्या नै टलै। माई कै बी जचगी। गैणो, गांठो पूरो पडलो अर लाडी का बारणा की सोबा की बात पाकी करर पैली पानड़ी के हलद का छोटा द्या, ल्छोय पलेट्यो अर नेगी का हात में धर दी।
अब कांई छै, राजा बोले ठाड़ी पावै सगली त्यारां दमा-दमी सू सरू होगी। केसर घोड़ी सजगी। जान में जाबा कै लेखै गाड्यां पै गाड़्यां जुपगी। बैलां का गलान में घूघर मला गरणाबा लागगी। लुगायां नै बना गाबा की झड़ी बांध दी।
घ्म्हारो बालक बंदड़ो जी राजङ दो दन को बसराम गेला में लेर तीजे दन जान लाड़ी का गांव में पूगगी। दोन्यूं आडी का छूला पटेल जी का धन सूं सलग ग्या. लाड़ी का बारणा की सोभा में राती खोतली का मू़ा आछ्या खोल द्या। लाडी का घर सूं लाडी की बदा होबा की बगत आगी। माई नै बेटी छाती सूं चपका ली। बाप की आंख्यानतरगी। कुटम-परवार, पाड़-पड़ोस्यां नै बी माथै हात फेरर बाई बदा र दी। नुवा पटेलण जी की जाजम बछगी। नुई पेटलण का रंग रूप की चरचा सगला गांव में फैलगी। पटेलण ने देखबा कै लेखै लुगायां को मेलो भर ग्यो।
नुवा पटेलण ने देख-देखर वां की बढाई की चरचा सारे फैलगी। कै कांई हूर की परी छै नुई पटेलण। पटेल जी का तो भाग ही खुल ग्या। नुई पटेलण छी बी अस्सी। नाक-नक्स-अस्या छा जामए सुनार नै सांचा में ढाल्या छै। आंख्या देखो मोटी-मोटी हरणी जसी। बोली घणी मीठी कोयल की नांई। चाल गजब की हथणी की नांई। ढूंढी घणी पातली, सभाव की घणी हंसालू।
नुई पटेलण नै परणयां पांच बरस होबा में आया। पण पेट नै मण्ड्यो। बेटा की आस का बसवास का पग ढीला पड़बा लाग ग्या। देवी-देवतां कै ढांक-ताल्यां बाजबा लागगी। अब तो मनोत्यां पै मनोत्यां मांगबो सरू होग्यो।। जाण तेरां सूं कंडा-डोरा करार पेटलण की ढूंढी भरदी। बामण-जोस्यां सूं गरह-सांत्यां कराली। भाटो-भाटो देव करल्यो। पण वेई छोला का तीन पाई नुई पटेलण को पेट नै मण्ड्यो ज्ये ई मण्ड्यो।
अब तो नफा में पडर पराणी पटेलण जी अर पटे जी नै तीरथ जातरा करबा को बच्यार करल्यो। अत उतरा खंड की जातरा पै ढोल कै मालोल देर चाल खड्या। नुवा पटेलण जी कै तांी सगलो कार-बार संभला चाल्या। पटेल-पटेलण जी नै केदार नाथ की बोलारी बोरी कै हे नाथ? म्हांका घर में ऊजलो फल आज्यागो तो थारै डंडोत करता आवैगां। फूल नै तो फांकड़ी ई हाजर करैंगा।जातरा कर दोन्यूं तीन म्हीना में घरां बावड्या। भगवान की करपा सूं नुवा पटेलण की कै नों म्हाना पाछै बेटो जनम्यों पटेलजी कै घरां थाली बाजबा की बगत आई। थाली का टंकारा नै आधी रात की सारा पाड़ा में जाग कर दी। तड़कै होता ई बन्दूक्यां हाला, बाजा हाला बना बलाया ई आग्या। बाजा अर बन्दूक्यां सू सारो गांव गरणा ग्यो। पराणा पटेलण जी हरक सूं हर्या होग्या। पटेल जी का भाग की बढ़ायां मनख-मनख का मूंडा पै होबा लागगी।
नुवा पटेलण को मान बदग्यो। एक फूल चढ्र एक फूल उतरबा लाग ग्यो. माधोजी बाण्यां का कलाकन्द का थाल का थाल खुसी में खाली होग्या। पराणा पटेलण जी का त्याग की बातां सगला गांव में फैलगी। जोसी जी आग्या। बालक का गरह-गोतर का हस्याब होग्या। नेगण जीन ने हातां में सूना की गुजरी झमकाली। पन्या नैं समंदर लहर को स्यापो अर हातां में सूना का कड़ा फैरल्या। रब्बो दाई, फूलां धोबण, छीतां मालण, खमारां के गोरूजी की बू नै सबाका धमका ल्या। जोसी का पतड़ा में बालक का गरह-गोतर नखतर घणा आछ्या कढ्या। बालक घणो नावं ऊंचो करैगो. बालक को नांव घ्कङ आंखर पै खड्यो ई लेखै नांव केदार लाल रखाण्यो। एक पंथ दो काज हालो हस्याब। केदारनाथ की मनोत ीमानबा सूं ई तो घर में ऊजलो फल आयो छो। खणावत छै कै पूत का लक्खण पालणा में ई दीख्यावै छै। माई जस्यो चांद सो मूंडो, धुघराला बाल चपलात करती आंख्या। पगां में उरद रेख। सेली मुलक बालक का भागसाली होबा की साकसी देरी छी। पटेल जी अर पटेलण जी को बालक नै देख्यां सेर खून बधतो। मनड़ो आणन्द का समंदर में हलोला लेबा लाग जातो।
पराणी पटेलण अर पटेलजी ने बालक होताई केदार नाथ की कांकरी घूंदी। छत्तर छढायो। सवामणी करी सगला देवी-देवता ढुकाया पम आछी भलमी हांसी खुशी में चालती गरस्ती के गाबा में ई गेरेण लाग ग्यो. रंग में भंग होग्यो। भगवान को अस्यो कोप होयो कै बालक की बारा बरस की ऊमर में ई बाप की साया मटरगी। हीरालाल जी को सरग बास होग्यो. केदार जी पै सगलो बोझ आण पड्यो। पटेली को सेवरो बंध ग्यो। कंवर पणोउत्तर ग्यो।
बारा बरस की ऊमर का केदार लाल जी पटेल ्‌कक्ल का फूतला बाप सूं बी सांवता चढ्या। पटेल हीराल जी सभाव में तो आग बरसै छी. पण पटेल केदारलाल जी को सभाव तो स्याला की कोरी माथणी का पाणी की नांई घणो ठंडो छो। बाप पूरबतो बेटो पच्छम। कोई बबत की मार्यो आ जावै तो हीरलाल जी कै तकै पसेऊ नै आतो। पण केदार जी नै तोल पड़ जावै तो वां को कालज्यो तो ऊकै सायर ोलगावै। चाल चलण में बाप जस्या ऊजला. गरब गुमान सूं कोसां दूरै। बड़ सूं दाजी छोटा नै काकाजी, बायरां नै बा, काकी खैर बतलाता।
सगला गांव में दुख-सुख हारी बेमारी में बांटो बांटता। रात-बरात में हेला कै समचै काम आता।
काल-कुलाक की बरी बगत का सायरा छा पटेल केदार लाल जी। गरीबां सूं वां को घणो भायचारो छो। जाणे आगला भोतर में वां की जमात में सूं ई आयो होवै। पटेल जी का हाली ग्वाल पटेल जी की बाप की ऊमर का छा। पण फेर बी बड़ा-बूढ़ां की नांई वां को समालो करता। हारी-बेमारी में अलाज-पाणी कराता।
ज्ञान गरद गा घणा जाण कार। फैहर रात तांई धूणयां पै राजा हरी चन्द, मोरधज, तेजाजी राज भरत री की ख्याण्या खैता रैता। पैला गांव का बड़ा-बूढ़ा मनख बी वां सूं गेलो गूजबा आता-जाता रै छा। घणी बार छोरा में छोरा हो जाता वां कै भेलै खेलबा लाग जाता। बालकां का चाचा नेहरू जस्या छा।
एक बार म्हांका गांव में दो आसामी नीड़े का गांव सूं पसीना में झाकरा झींकरी होता आया। वां का होटा पै फैफर्यां आ री छी अर उतावली-उतावली चाल सूं आ र्या छा। उतावल सूं ाबा तो मतलब छो कै एक बायर कै नुवो मनख ाबा हालो छो। बायर एक दन अर एक रात सूं कष्ट री छी। बालक होबा को नांव ई नै ले र्यो छो। गांव की च्यार-पांच स्याणी-समझणी बायरां नै आप-आपकी अक्कल अजमा ली। बायर आछी घंघोल न्हाकी। जद बात बस कै बारै खड़गी। जद एक बूढी बायर ज्याग कै बारै आर ब्यावर का चूंतरा पै बैछ्या घणी सूं धीरा सेक बोली। कै बसन्त खेड़ै जार रब्बो दाई नै बलार बेगा साक लाओ। ऊं सूं ई काम साबर में आवै गो। म्हांका बस में काम नै आ र्यो। बायर को घणी घणओ घबरायो अर पगां में जूत्यां बालर बसन्त खेड़ा कै गेलो लाग ग्यो। बारै चूतरां पै खात्यां के मूल जी बी बैठ्या छा। ब्याव को हाल-चाल सुणर वे बी ऊं की लार होग्या। वे दोन्यूं बसन्त खेड़े तो आ ग्या. पण दाई को घर नै जाणै छा। वां नै गर्याला में घेलतां छोरा सूं बूजी तो ेक नै मछ्याई खाबा की सरत पै दाई को घर बतायो। रब्टो रोटी खाबा बैछी ई छी। ब्याव को हाल कुणर थाली सरका दी। अर अल्ला को नांव लेर वां आसाम्यां की लारां होगी। मठ्याई की सरत लागाब हाला बालक नै एक आसामी का कुरती की चाल पकड़ ली। घणो टंटो फस ग्यो। एक आसामी तो रब्बो नै लेर वां का गांव की आडी चाल द्यो। दूजो छोरान् नै मठयाई द्वाबा बजार में ग्यो। ऊं नै पाव भरी मछ्याई मोल ली अर ओलयूं दोलयूं ऊबा सगला छोरला में बर्याबर सूं बांट दी। पण ऊं बालक को आरो नै समट्यो ऊ तो या ई खै तो जा र्यो छो कै अतनी सीक मठयांई। बार-बार ऊ अर आसामी कुरता की चाल ई नै छोड़ र्यो। आसामी घणा-पसू पेच में पड़ग्यो।
पटेल केदार लाल की कांधा पै धोवती मैलर नन्दी पै न्हाबा जा रह्या छा।
छोरो ऊं आसामी का कुरता की चाल पकड़्यां रोलो कर र्यो छो च्यार-पांछ छोरा बी एकठा होर वां ई ऊबा छा।
पटेल जी नै सारी बात की जाण कारी ली। ऊ आसामी नै सरू से लेर आखर तांई बात बता दी। पटेल जी नै ऊं आसामी सूं खी। कै बात तो ई बाल की सांची छै। ई कै तांई अती सीक मठ्याी था नै क्यों दी। जाओ पाव भर मठ्याई ओर लेर आयो। ासामी बी मन को दर्याव अर मसकर्यो ई छो। पाव भर कलाकन्द केसरा बाण्यां की च्हां सूं और तुला लायो।
पटेल जी नै मठ्याई हात में ली फेर वां नै वा ऊबा जतना छोरा छा गणर ऊ मठयाई की गल्लायां करी। वां गल्यां में ेक गल्ली सब गल्या सूं बड़ी भार करी बाकी गल्यां बर्यां बर की रखाणी। अब गेलो बताबा हाला छोरा सूं खी कै उठा ले थारी मरजी पड़ै जसी गल्ली। ठछोरा नै सबसूं बड़ी गल्ली उठा ली अर घणो राजी होयो। कै अब मली मनै नरी सारी मछ्याई बाकी गल्यां ओर छोरां कै तांई बांट दी। अस्या छा अक्कल का फूतला अर बालकां को मनोविज्ञान का जाणकार पटेल केदार लाल जी।

बा रामी

गांव में जुगादू जाटां की बा रामी दस पचोल का हस्याब सूं ऊमर बतावै छी। छन्नम के पांच बरस फेली को जनम। मूंडा में नुवा उग्या चावलया दातां नै हांस-हांसर बताती। खदी-खदी लांबी नसास पटकती रैती। कै म्हारी ऊमर का तो भाया रूंखड़ा बरखड़ा बी सरड़ ग्या. पण म्हूं तो काला कागला खार आई छूं। भगवान काणा कदैक बुलावैगो। पण कांई करां ऊ की भुरजी। हाल तो डीलकै मचको बी न्हा लाग्यो बल्यो।
डीलडा की खाल नै छोड्यो मांस, माथा पै पूणी जस्या धोला फबूक बाल, गालां पै सलोचटां को जाल। या छी बा रामी की ऊमर। बहा सूं दस बारा बरस फोरा गावं का एक दो डोकरा बतावै छा। कै बा का जोरा जमाना में धरती पै वां न्है ठेरै छा। ओले पाड़ै चालती तो धमातो पेला पाड़ै सुणै छा। तारो उग्या घट्टी नै घमडाबा लाग जावै छी। बा की घट्टी को घर्राटो सुणअयां पाछै गांव की लुगायां आंख्यां मसलती उछती अरघट्टयां कै झूमती। बा ऊं बगत में घड़ी को काम करै छी। भाफाट्या तो छ्याछ को बलोवण समटे लेती. अर सूरजनाराण की फैली करण की लारां बा माथा पै रोट्यां की छाक घरर खेत कै गेलै लाग जाती।
बा का हात को बंध्यो सूंड़ को भारो आछ्या-आछ्या मोट्यारां कै बी भारी पड़ै छो। घट्टी में गालो ओर्यो अर बा नै गीत उगरैयो गाबा बजाबा को बा कै घणो सोक छो. ब्याव-सावा में लाड़ा-लाड़ी की बन्दोरी में घोड़ी के आगै बा को नाचबा को नम्बर आतो तो बा नाचती-नाचती दन उगा देती। छंगो ढोली बाका घोडी का नाच में कालबेल्यां की बूकी ढोल बजातो-बजातो मसत् हो जावै छो। छावै लाडा-लाडी घोडी की ऊंग-ऊंगर पड़ै। बा नै सुद ई नै रै छी।ब्याव सावा में बा कै बना गाया-बाजाबा को जमावड़ो ई नै जमै छो। हारी-बेमार की बी बा घणी काचरी छी। आधी रात में बी हेला कै समचै ई उछर आगै हो जाती। कोई नै नरास न्है करै छी। बालकां कै खांसी-खखेरो, ताव बुखार जाडाहूली जसी बेमार्यां की जड़ी बूंट्यां की जाणकारी बी बा कै तांई छी। भट्टा कटैली को जीरो तो बा को लूगड़ा का पल्ला कै ई बंध्यो रै छो। डूंटी-बायगोलो मन्तरर पग की पींड़ी की नस नै सूंतर बठाण दे छी।
बा गांव का मनख-मनख का मूंडा पै धरी छी। तरपड़ती बायर कै बालक में थोड़ी सीक बी देर हो जाती तो घर की बायरां काण्यां घूंघटा नै दातां मे दाबर बारै चूंतरयां पै बैठ्या कोई बी मरद नै बलार धीरां सेक खैती देखां बा नै बला लोवो। गांव की बायरां कै बा को पूरो बसवास छो। ऊं कै आतांी सब कै घणी साता आ जाती।
ऊमर का पछाला दना में बी बा रामी कोई व्ही आसरूती नै छी। रूंखड़ की जड नी नांई छी। जस्यां रूंखड़ा में जड़ को, तणा को, डाल-गोला को पसबां-पानड़ां को काम नालो-नालो बट्यो रै छै। उस्यां ई गांव का परवारां को बट्यो रै छो. सगला मनख अनुशासन में बंध्या-थक्या रै छा। अर आपणो-आपणो काम करता रै छा। बा रामी का परवार को चरख्यो बही ऊं सारू फरतो रै छो। बा को तडकाव मैं उठबो। लाकड़ी कै टेकै-टेकै हात उजला लेबा गडार-गडार नन्दी पै जाबो। भेर पड़ा घर में ठाकुर जी का आल्या के नीडै बैठर गला में पड़ी तुलसी जी की माला उतारर ऊंका मूंगाय रलकाबो। पाछै चूल्हो सलगार राबड़ी को पातो चढाबो। ढंढ का दना में चूल्हा कै ढाबै बैठर हातां नै सेकबो अर धीरां धीरां टाटू सूं राबटी टालबो बा को नत उठ धन्धो छो। दूध को दूहण्यों आता ई चूल्हा की छूल पै दूध को तोल्यो चढ़ाबो। दूध चढ़ाता ई बा दूध डालबो सरू कर दे छी। ज्यां-तांई राबड़ी में दरबड़ी लागबा लाग जावै छी। डांडो जन चढ़ता ई बा बेटा-पोता, बेट्यां बुवां, कै लेखै थाल्यां में दूध-राबड़ी सेल करती। फेर बा रोटी-स्याग का चक्कर में लाग जाती. बुआं-बेट्यां राबड़ी का सबडका लेर नरम रोटी के बेर तांई घर का गोबर-पाणी बुआराझाडा सूं नपटर रोट्यां की छाकां माथा पै धर्यां खेतां में पल जाती। सझया की रोट्यां बी बा हाथां सूं पोर ख्वाती। खदी-खदी कोई घर-परवार को मनख मोड़ो-बेगो हो जातो तो ज्यां तांई रोटी नै खालै बा नै कल नै पड़ैछी।
बा परवार की अन्न पूरणा छी। परवार की रूंखड़ा की जड़।
बा टाबरां में टाबर होई रैती। खदी-खदी मह्तार्यां टाबरां के थापड़-थोल्या दे लेती। तो बालकां को बा कै पास ई आसरो छो रोता-रोता बा की गोदी में ई ठहरता। बेटा-पोता बा ं का हेला के समचै ई दोड़ के आता। घर की डोर बा कै बना नै हालती। हारी बेमारी में बां कै तांई खण्यां तोकर बेदजी सूं दवाई दूवार लाता। सगला घर का बा को थूंक्यो नै उलांगता।
म्हांका गांव में दूसरा परवार बी अस्या ई होवै छा। पण बा को परवार एका में, परेम में, बड़ा मनख्यां को मान रखाणबा में गांव में सबसूं आगै छो। खदी बासण सूं बासण खड़की बी जाता। पण फूटै कोई नै छा। बेगा ई साबर आ जाता।बीत्या दना का म्हांक भेला परवार म्हांकी नराली पछाण रखाणै छा। आज तो रूंखड़ा सरड़ र्या छै। डाल-गोला मनगत फैल र्या छै। बा रामी का परवार जस्या परवार पुराणआ जमाना की ख्याण्यां बण ग्या। म्हूंर म्हारो मणस्यो की संस्कृति पनपरी छै। पच्छम की बाल का धूला सूं म्हांकी आंख्यां मेंधूल का जाला आग्या। राबड़ी का पाता अर दूध की दूण्यां फूटगी। डब्बा का दूध, बेड टी, डबल रोटी नै राड कर ल्यो। गोरज्या का हात सूं लाई छाक, कमोली की छ्याछ को स्वाद गम ग्यो. बड़ा-बूढा को खखारो छोटा-मोटा कै आग को अंगीरो बण्ग्यो।
वै दन बी कांई दन छो?

धन्नी-मन्नी

भाग चन्द जी सेठ का मुनीम बाल मुकुन्द जी सगला मुनी रोकट्यां में खास मानीता छा। सेठझी की हामल में हामल भरता। सेठजी की कलम करजा हालां कै नांव हजार का पन्दरा सौ। पच्चीस सौ मांडबा में घणी रपटै छी. खदी न्है बी रपटती तो बाल मुकुन्दजी सायरो लगाबा मै नै चूकता। मतलब यो कै जीं की खांवां ऊं की गावां। रोजीना तलक-छापा लगार दुनियां कै आगै भला मनख बणबा हाला। बोलबा में घणा मीटा मसरी की डली। पण मन का घणा काला।
घर सूं घर बणै छै। जस्या कै गोडै बेठै तो उस्या ई लक्खण लेर उछै छै। ई मुजब बाल मुकुन्द जी का दन बी बावड़बा लाग ग्या। मुनीमाणी जी गेणा-गांठा सूं धोला-पेला होग्या। भगवान बी भर्या नै ई भर छै। गरीब नै तलै छै। बाल मुकुन्द जी कै एक कै पैछै ऐक अकनाल्या च्यार बेया बी होग्या। पण बेयठी की डकार बी नै ली। मुनीज जी कै बेटी की चायन्यां बी कोई नै छी। बेटी नै तो डगरी बतावै छा डगरी। अर ऊं डगरी सूं दो कोस दूरै ई चालै छा मुनीम जी। पण मुनीमाणी जी को बच्यार छो कै बेटयी बना तो घर को धरम ई नै खडै। कन्या दान कै बना तो मनख जमारो बरथा छै। ई लेखै बेटी कै कारण मुनीज जी कै छानै-छानै देवी-देवता ढोकी। भगवान की करपा सूं छोटा ई छोटा बेटा आणन्द प्रकाश कै पाछै कन्या को जनम होयो। कन्य को जनम होबो मुनीम जै कै रास नै आयो। वां कै तो घणो कलेश आग्यो। जाणे घर को कोई मरग्यो होवै। पण मनीमाणी कै घणो हरक छो। छोरी बी रूप की सांवटी छी।मुनीमाणी की नै हरकर बेटी को नांव मान कंवर रखाण्यो। करम की बता स्वा बरस पाछै ई मान कंवर की फूट पै पग धती दूजी बेटी ओर होगी। मुनम जी तो ऊंदी कलोट्यां पडग्यां। कलेश आयो तो अस्यो आयो कै सपना में बी ओझकबा लाग ग्या। मुनीपाणी जी की कदर बगड़गी। पण मुनीमाणीजी कै तो रत्त भर भी कलेस नै आयो। अर दूजी छोरी को नांव हरकर धन कंवर रखाण्यो। वे खैता बेट्यां तो दुनियमा में भागसाल्या कै पैदा होवै छै। सब आपणओ भाग लेर आवै छै। म्हारै तो दूसरी बेटी धन छै धन। यो धन म्हांकी लेरा जांवैगो।
मान कंवर को कन्या दान करर तो म्हां बर्याबर होवैगा। धनकंवर को कन्या कंवर ई आगला भोतर कै लेखै म्हांकी लेरा जावैगो। मुनीमाणी जी बेट्यां को घणो लाड़ करता। लाड में धन्नी-मन्नी क्हर बतलाता।
मुनीमाणी जी मुनीम जी कै तांई समझाता ज्ञान देता कै कन्या दान तो करणो ई पड़ैगो। पण मन में कणपर कर्यो दान अकारथ ई जावै छै। बेट्यां तो लछमी कोरू होवै छै। ज्यांनै देवता बी पूंजै छै। अर थां माथो ठीणो छो। मनीम जी दूसरा की हां में हां भरबा का घणा काचा छा। मुनीपाणी जी की बात मानर खदी-खदी बेट्या को लाड करबा लाग जावैछा।
बेटी को धन रेवड़ी का करजोडा की नांई बध छै। नौ दस बरस तांई की कन्या को कन्यादान को ई धरम लागै छै। एक पंथ दो काज धरम बी दोहरो होवै अर रूपया बी कम खरच होवै। जीसूं होवे छोर्यां को एक सावै ई ब्याव करबा को बच्यार बणायो। मुनीमाणी जी मुनीम जी सूं बोल्या उतावल करो। कन्यादान की बगत आगी। बींद हेरो।
दोनी कै लेखै मुनीम जी नौ आछ्या घर बार देख्या पण मन्नी जद सासरै आई को ऊंका घणी की सोबत बगड़ी मेली। दारू में धुत्त धणी रात में घणो मोड़ो आवै। खाबा-पीबा में कसर रै जावै तो लुगाई नै धंदावै जतनो कमावै सारो खुद खाज्या-पीज्या। छावै घर का भूखाई सोवै। माई-बाप बीं ऊंकी पक्ष बोले। अर सगलो दोस मन्नी पै लगावै। मन्नी रात में मार खावै। पण सीसोड़ी नै पाड़ै। खसम को दारू सूं डील बगड़्यो ज्ये तो बगड़्यो पण धन्धो बी नमट ग्यो। घर का थाली-ठीकरा बी बकबा लाग ग्या। मन्नी की रकमा-चीतां तो फैली छानै-छानै बगस का ताला तोड़-तोड़र एक-एक करर बजार बतादी छी। मन्नी कलेस की मारी सूखबा लागगी। होल्यो-होल्यो नाज आंख्यां का खाडा में आ जावै अस्सी आंख्या बैठगी। भरी जवानी में ई डोकरी की जसी होगी। ऊंकी मोज-मस्ती काला बादलां में बदलगी। अब तो ऊं कै पीबा में आंसू अर आखाब में गाल्यां अर मार रैगी। अस्सी बगत में सासू ससरा बी सूसरा बेटा के गोडे चली ग्या। बगत की मार झेलबा में रै ग्या मन्नी, बबलू, पप्पू, रेखा, पिंकी।
घ में ऊंदरा ऊंचा हो-होर झांकबा लाग ग्या रात खावै तड़का का सैंसा। मन्नी नै तो भूख सूं भायल करली पण छोरा-छोर्यां की भख की कील मन्नी कालज्या में गड़गी। आदमी को दारू अर छोरा-छोर्यां का खाबा-पीबा की चन्ता मन्नी का माथा में घर करगी।
एक दन तो मन्नी हीमत ककर खानदान की इज्जत नै खूंटी पै टांकर खमठाणा में मज्यूरी करबा खढ ई गी। मन्नी तो मज्यरी पै गी। खसम नै दारू की तलब बझाया के लेखै गगरो बेचर दारू को अन्तज्याम कर ल्यो। ऊं दन खसम कै दारू को ओर अन्तज्याम कोई नै छो। ऊ नै दारू की बोतल लार पोल का गोखड़ा पै घर दी। अर गलास लेबा घर में उल ग्यो। उंठी बबलू खेलतो-उछल्लतो पोल में आया तो ऊंका ठल्ला सूं दारू की बोतल नीचे गरर करच-करच होगी। मन्नी का आदमी नै फूटी दारू की बोतल देखी तो आंख्या फाटी की फाटी रैगी। ऊं कै तो हरदा को बन्धो टूट ग्यो। ऊ दारू कै बना तो फैली बावल्यो हो र्यो छो। तडड़का सूं ऊंको माथो दारू कै बना तड़फ र्यो छो. अब तो ऊंको माथो रोस में अस्यो तड़क्यो। कै छोरा का माथा काल पकड़र भीत कै अस्सी भड़भट दी कै छोरा तो माथो तो नारेल की नांई फूट ग्यो। ऊ हत्यारो तो छोरा ने देखर माथो पकड़र बैठ ग्यो। पप्पू, रेखा, पिंकी नै भाँभाहेड़ो मचा द्यो। छोरा-छोर्यां को रोवण सुणर पाड़ा का मनख भेला होग्या। मन्नी काम पै सूं बलार आणी। छोरा नै देखतांई मन्नी तो भसेड़ी खार पोल में पड़गी।ष लोग-बोग छोरा नै डागदर कै गोडे ले ग्या। डांगदर नै तो देखतांई नाड़ हलदाी. थाणादर आग्यो। सपायां को मेलो लाग ग्यो। आदमी नै हथकडी फ्हैरा थाणा में लेग्यो। मन्नी का माथा पै दुख को परबत ओर टूट पड्यो। ऊं करम खोड़ला नै छुड़ाबा सारू अठी-उठी का रूपया और माथै होग्या।
अब तो मन्नी के चन्ता ओर होगी। ऊ नै तो रोजीना कमठाणो को गेलो पकड़ ल्यो। कोई दन मज्यूरी मलै, कोई दन नै बी मलै। आप को खदी-खदी पाणी पीर ई सबर कर लै। पण छोरा-छोर्यां को पटे तो चटणी रोटी सूं भर देती।
एक दन मन्नी कमठाणैगी । तो ऊं की बहण धन्नी का गांव की मनोरी मलगी। मनोरी नै बतांई कै धन्नी का छोरा मोहन परसाद का बसन्त पांचै पै जडूल्या उतरैगां अस्यां सुणबा में आई छै। सुणर मन्नी घणी राजी होई। बोली म्हारा बणा कै नींठ-मराड़ा को छोरो छै। भापड़ी की आड़ी नठां भगवान झांक्यो छै।
मन्नी नै घर नै आता ई घणी राजी होर छोरा-छोर्या कै तांई समचार ख्या। कै मावसी का भाया मोहन परसाद का बसन्त पांच पै जडूल्या उतरैगा आडा गेला का बालाजी कै। वै ई झांक्या छै परमेसरा। नै तो छाती पै सोता आ जाती भापड़ी कै। चोरा-छोरी बी जडूल्या को नाम सुण तांई घणा राजी होया। वां कै तो जद सूं ई मावसी कै यां जाबा का घूघर बंध ग्या। भूखा मनखां कै परेम की बी घणी भूख रै छै।
छोरा-छोरी नतकै माई सूं बूजता। कै बीजी बसन्त पांचै का कतना दन रै ग्या री? मन्नी बालकां नै दन बताती अर साता पाती। मन्नी नै बच्यार कर्यो, कै बहण का बेटा का जडूल्या उतरैगा तो लत्ता कपड़ करबो म्हारो बी फरज छै। म्हूं बड़ी बहण छूं। अब म्नी नै म्जूयरी का पीसा में सूं थोड़ा-थोड़ा पीसा एकठा करबो सरू कर द्यो। छोरा-छोर्यां कै रोटी पो देती। आप लपटा-राबड़ी सूं काम चला लेती। थोड़ा पीसा एकठा बी होया। घट्या ज्ये माथै कर्या। एक दन मज्यूरी की खोटी ककर नीड़े का हटवाडा़ में जार लता-कपड़ा लाईछ छोरा के लैखे खेलकणा ल्या। पण घर में घणी कड़की आगी। एक दन तो नरण-परण ई रै गी। नीठ जार घर की नाव कराड़े लाबा लागी। पण गेला में आबा-जाबा को ऊपरलो खरचा की चिन्ता बी छी।
बसन्त पांचै का दो दन रैग्या। पण मन्नी नै नूतो नै खनायो। धन्नी अर ऊंका छोरी-छोरी नतकै नूता की बाट न्हालता। पण नूता का दरसण नै होता। ठोरी-छोरी मन्नी को दन उठ माथौ खावै जीजी मावसी को नूतो नै आयो। अब तो बसन्त पांचे क्हाल ई छै। मन्नी बालकां नै सबर बंधाती। वा खैती भाया जींका घर मं काम पड़ै छै। ऊ चौक-चाक भूल जावै छै। फेर ऊं कै तो प्हली परचोट काम पड़्यो छै। अर अकेली काम करबा हाली छै। घर मे काम बी सांवटो छै। अर अब तो जडूल्या का फावण-फीर बी आग्या होवैगा। आज बसन्त पांचै ई होगी। छोरा-छोरी जरा सी पगवाला बाजे तो बारणा की आडी भागै। खीं कोई नूतो देबा हालो तो नै आग्यो। आखर में तीताज प्हर की धन्नी को हाली नूतो देबा आयो। बोल्यो धर्याणी नै तो, टेम ई कोई नै। फावण-फरी की आव-भगत में लाग र्या छै। घर में घणो काम फैल र्यो छै। सुणणा ई मन्नी कै सकीमी की करोत तो चालगी। पण गाडो मन करर आपणो फरज जाणर छोरा-छोर्यां को बी मन रखाणनो छै। अस्यो बच्यार करर हाली सूं बोली तू चाल म्हां आवां छा।मन्नी नै छोरा की फ्हरावणी संभाली। मठ्याइ घट री छी भागी-भागी बजरंगी जी बाण्यां की दूकान पै सूं मठ्याई लाई। पप्पू की कमज बायां में सूं फाट री छी, ऊं कै टांको लगायो पिंकी की घाघरी उधड़ री छी वा सी। ई तरह सगली त्यारी करर लत्ता-कपड़ की पोटली बांधर माथे धरी। अर छोरा-छोर्यां नै लेरां लेर पगां-पगां राम नगर धन्नी का सासरा का गांव कै गेलो चाल पड़ी।
राम नगर दो कोस ई तो छोप ण फेर बी छोटा-मोटा बालकां का साथ की मारी चालता-चालता संध्या पड़गी।
धन्नी का घरनै जुनार लागबा की त्याी हो री छी। धन्नी का घर-आंगणा फावणा-फीर सूं भर्या छा। धन्नी नै बैण अर छोरा-छोरी तो देख ल्या पण मूंडा पै हांसी नै हुलसी। मन्नी आगै होर ई धन्नी सूं बाथ भरर गली अर बोली पण धन्नी हां-हूं करर पाछी काम में लागगी।
मन्नी अर ऊंका छोरी-छोरी बना बलाया फावणा की नांई एक आड़ी उबा होग्या। घणी बार तांई तो ऊबा र्या भाई कोई बैठबा की बेई व्हैगो। जद कोई का मूंडा सूं बी आव भगत का दो बोल नै फूट्या तो आप ई एक खूण्या में सकड़ी सी ठाम पै सुकड़-मुकड़ होर बैठ ग्या। पगां-पगां आया छा। थाक र्या छा। गरीबी की मारी कुकड़्या-मुकड़्या बी हो र्या छा। फैर वां बी वां सूं कोई नै बोल्यो अर उल्टा सगला अजूबा ई देखे जस्यां वां नै घूर-घूरर देख र्या छ। ई लेखै बी छोरा-छोर्यां नै सरम आ री छी। धन्नी का ज्वांईजी मननी कै सारयै होर दो बार खड ग्या पण नै बोल्या। जाणै मन्नी सूं वां को दूरा-दूरा तांई को बी सांदरो कोई नै। दूजा फावणा सूं तो बार-बार में खै कै जीम्बा पधारो सा! नहोरा में रसोई त्यार होगी। धन्नी बी फावणा नै हात पकड़-पकड़र उठा री छी कै जीम्बा चोला। पण मन्नी अर ऊंका छोरा-छोर्या की आडी नै तो झांकी अर नै वां सूं जीम्बा कै लेखै खी। मन्नी नै धन्नी बुलार खी कै मोहन परसदा खां छै। प्हरावणी पहरा द्यूं। तड़कै टेम सर तो म्हूं अस्यां नै आई कै म्हारै हाली नूतो देबो ई तीजा प्हर की आयो छो। ई लेखे अबाणऊ ई फ्हरा द्यूं।
धन्नी झूंझल खार बोली-आबाणू खुणनै फुरसत चै। मोहन नै कुण हरेगो। बड़ा-बड़ा नेता अर सेठ-साहूकारा में काणा-कुण की गोदी में होवैगो। अर यां छींतरां नैं फ्हरातां बी तो समर आवैगी। आज क्हाल तो हाली-ग्वाल बी चोखा फ्हरावै छै। देखां भंगण का न्होरा करूगी ले लेगी तो। या कह्र मन्नी का हात की पोटली धन्नी नै छुडा ली। अर भीतर घर को में ले जार धर दी।
मन्नी कै तो काटो तो खून नै खड़ै। ऊपर सूं लेर नीचै तांई को लोई भल्ल दणै सी बल ग्यो। ऊं को म्हरलो अपणा-आप नै धक्कर बा लाग ग्यो। आई छी लखैसरी बहण कै च्हां। गीरीब कै बी इज्जत-आबरू होवै छै कै? खून को नातो-रिस्तो बी सकीमी कै सामै सरमावै छै बावली? पण पीता पोछा मारर ऊं का छोरा-छोर्यां नै लेर एक खुण्या में बैठी री। वां सूं कोई नै बी नै तो रोटी की बूजी अर नै पाणी की।
घणी बार बैठ्यां-बैठ्यां होगी।ष मन्नी नै बालक समझा म्हल्या छा। कै कोई कै घरनै जावो तो भूख-भूख मत कर बी करो. नै तो थां म्हारो जीव खा घालो। खदी रोटी-खदी पाणी। घर मैं चूह्ला पै जस्यो टूकड़ो पाकै उस्यो ई खा लेपू करो। ई लेखै छोरा-छोर्यां नै भूख-तस होत सता बी माई सूं सुसकार बी नै सार्यो। छान-मून होर सुकड़-मुकड़ करता र्या. घणी बार पाछै पप्पू सूं पाणी की मारी नै र्यो ग्यो। ऊ छानै सेक माई सूं खैणो ई पड्यो-जीजी घणी जोर सूं तस लाग री छी।
धन्नी उठी लोठ्यो हेर्यो। परांटी पै सूं पाणी भरर छोरा-छोर्यां कै तांई पाणी प्वायो। भूख सूं बी छोरा-छोर्यां की आंतर्ड़्यां कुरला करी छी। पण माई का डर की मारी सुसकारो बी नै कर्यो। छोरा-छोरी हार्या-थक्या हो र्या छा। जे माई कै ओल्यूं-दोल्यूं ई गुड़क ग्या अर नींद आगी।
सगला फावणा-फीर ज्यात-ब्वार की तीन पगत्यां उठगी। जीम-चूंहट सगला अपणा-घरां नै ग्या। बाह सूं आया फावणा बछावण में जा सोया। जद जार धून्नी ठंडी सीक मन्नी सूं बोली छोरा-छोर्यां नै जीम्बा खंदा। लाडू तो बीत ग्या. पण पुड़्यां अर स्याग को झोल्यो छै। खा लेगा। धन्नी का कालज्या में झरझल तो नै माई। पण बह्ण की आडी झांकर सगली बातां ऊंडी दबागी।ष मन्नी बोली-अब यां नै तो नींद आगी जीम्बा कस्यां खनाऊं। यां ई ला दे जागेगा जद खा लेगा। धन्नी एक छाबड़ी में थोडी सीक पुड्यां लाडू को थोडो सोक चूरो अर स्याग को झोल्यो बाल्टी में छो म्नी कै तांई पकड़ागी।
मन्नी नै छोरी-छोरी नींद में सूं जगाया। ऊगण-नीद्यां छोरा-छोर्यां नै लाडू को चूरो, पड़्या का टूकड़ा चाब्या अर वां ई गुड़क ग्या। ध्नी ने तो यो बी भूख सूं भायली कर राखी ची। थोड़ी घणी भूख उछब सारू जागी छी। ज्ये मन्नी की बातां अर ब्यावर नै भाटा सूं भर दी। वा तो भूखी तसाई छोरा-छोर्यां कै गोड़ै ई गुड़कगी।
तड़कै ई छोरा-छोरी जगाया अर घर को गेलो पकड़ ल्यो। धन्नी अर ऊंको लोग जातां नै देखता र्यां। जातां जावै रैता कै का भाव सूं। मन्नी जाती-जाती बच्यार करती जा री छी कै ई जंजाल में माथै होया रूप्या कै दन में चुकैगा? दो दन? च्यार दन? कै पूरो बरस बीत ज्यागो? रूप्यो चुकैगा जद चुक जावेगा, पण कांलज्या की या टीस कद मटैगी?

काल में खायां लुटाता बोराजी

छपन्या का काल को हाल दाजी सूं सुण्यो छो। कै मनख्यां नै मनख भंभोड़-भंभोड़र खा ग्या छा। माई-बाप नै रोट्यां सांटे छोरा-छोरी बेच द्या। जठी झांको ऊंठी खाऊं-खाऊं माचगी छी। द्या धरम पाताल में जा घुस्यो। सगला नै आप-आप री पड़ी छी। ढांडा-डींगरां की तो बूजे ई कुण। दड़ै-दड़ै ई मरग्या भापड़ा। चील कांवला के भगवान की आडी को मन सूं ई नतो लाग ग्यो। घणा मनख बी चील कांवला की जमात में जा मल्या छा।
छप्पन का काल की चरचा करतां-करतां म्हारा दाजी की आंख्या में गलेडू भर्यावै छा। म्हांका गांव कमें बी काल पड़्यो छो। एक बरस, दो बरस, तीन बरस, लग-लगते पाणी कोन नांव नसाण नै बरस्यो। खदी-खदी बरसतो बी तो बामण का चौका ई छड़कै जस्यां छांटक-छींटा करर भाग जातो। पाणी बना मनख अतना तरस ग्या छा। कै बादलां का बंधाण बंध तांईं लोगां की आंख्यां बादली पै टक जाती। अर अन्दर राजा का घणा मनावणा करता।
हे, च्अन्दर राजा मनख तो पापी हो ग्या, पण गऊ माता का भाग सूं ई बरस जाछ अन्दर राजा नै राजी करबा कै कारणै मनख्यां नै घणा ओटपाया कर्या। पटेल जी नै काल्यो बलाई बुलायो अरप गांव में हेलो पड़ायो कै क्हाल गांव बारै रोट्यां कर ज्यो रै भाई ओ...। घरां नै चूल्हा नै बलैगा, नै तो डण्ड का भागी बणैगा।
दूजे दन गांव में चूल्हा नै बल्यां। गांव बारे सबने हेसत मुजब लाडू बाटी, दाल बाटी बणाया अन्दर राजा कै भोग लगायो अर खाया। पण अन्दर राजा को रूसबो बस में नै आयो। हीरामन जी कै ढाक-ताली बी बाजी। तीन दन में होकारी पाड़तो गोह्ट्यो का डील में हीरामन जी आया। परच्या कर्या। हात में आखा लेर बोल्या-पाणी तो आवैगो रे भआई। घबरावो मतो। जीजी भाई नै रोक राखण्यो छै। ऊं नै मनाओ। मरतो कांई नै करेतो। खाबा में अन्न का टोटा। पण माईजी नै मनाबा सारूं गांव हाला नै चन्दो एकठो कर्यो। घी लाया। जोत मंडाई। घोरलौ रैबारपरै ग्यो छो। आदमी खनार घोरलो बुलायो। दो दन अर दो रात कै पाछै नीड़े की नन्दी का कूंडी दै का देहड़ा में धमाको लागर घोड़लां की नाड़ हाली। नीबू काटर उगणी-आथणी मंगाऊ-लंकाऊ फांक्या पाछै परच्या कर्या।
हां रे भाई। म्हूं आगी छूं। पाणी तो बरसैगो रे भाई, म्हानै रोक रखाण्यों छो। अतना में ई दाजी पांचीकी माली बोल्या, कै पणमे सरी म्हांसू कांई चूक पड़गी, ज्ये अतनी खपा हो री छी। मनखर ढांढा दड़ै-दड़ै ई मर र्या छै म्हारी मात भवानी। म्हातों मनख छा म्हारी राजराणी गुणो माफ कर पाणी बरसा।
फेर घोरला का परच्या होवै छै। कै हां रै भाई पाणी तो तीन दन कै भीतर-भीतर बरस ज्यागो पण जीव को भोग द्यो।
ताबड़ तोड़ भागर गूजरां कै गेंदा जी बाकरो लायो। भोग लगायो। पण अन्दर राजो तो बस में नै आयो।
क्वांरी छोर्यां नै बी अन्दर राजो राजी करबा कै लेखै गोबर की मेंडकी बणाई अर माथै घरर घरां-घरां पाणी बरसाबा कै लेखै अन्दर राजा का मनावण कर्या।
अन्दर राजा पाणी दे।
पाणी दे गुड़ धाणी दे।
बरसूंगो बरसांगऊंगो।
ज्यार बाजीर बाऊंगो।
सगली छोर्यां नै गांव बारै घूघरी बणायर बी खाई पण अन्दर राजा कै तो द्या नै आई ज्ये नै ई आई। म्हांका गांव में दो ई बोरा छा। एक बजरंग जी, दूजा मदन जी। बजरंग जी तो खैबा का ई बोरा छा। सोकीन परगरती अर रैणगत में आछ्या। मन का दर्यावा हात का उरला। दया भाव का मोखला होबा सूं खरचो पाणी ज्यादा ही करै छै। ब्याज बट्टो बी थोड़ ई ले छा। पण फोरो पातलो काम ईचला सका छा।
पण मदन जी बोरा घणा साठा छा। सैकड़ा सूं लेर हजारा तांई को काम पोलका चूंतरा पै बैठ्या-बैठ्या ई सरका दे छा। गांव में सबसूं बड़ो मुकाम दाजी मदन जी कौई छो। मुकाम कै पाछै घणो बडो बाड़ो, ज्ये आवता में आया ढांडा-ढोरा सूं भर्यो रै छै। मदन जी चोरां सूं घमा डर पै छा. ई लेखै मुकाम लदाव की भींत्या सूं चुणा राख्यो छो। जीं सूं चोर भींत्या में सेंघ नै लगा सकै। बाडा को बारणो बी चोरां का डर की मारी पछ्योकड़ में सूं नै रखाण मल्यो छो।
दाजी मदन जी को घणो टेम पोला का चूंतरा पैई बीतै छो। आबा जाबा हाला, फावणा-फीर की हुक्का-पाणी की मनवारी लेण-देण हाला को काम दाजी चूंतरा पै बैठ्या-बेठ्या ई करता रै छा। चूंतरा का नाप की बडी भारी दरी दाजी नै मोत्या कोली सूं खैर बण वाई छी। ज्ये आठूंफैर चूंतरा पै ई बछी री छी। चूंतरा की आंथणी भींत में एक बखारी छी। जीं नै दाजी ढूंढी में बंधी कणकती में कूंच्या का झूमका में सूं कूची हेरर बरवारी को तालो खोलता अर ऊमै सूं ओडा होर खाडा-मली करता ई रै छा। चूंतरा का एक खूण्यां में उतारवां डांडी की नली को पीतल को हुक्क धर्यो रै छो। जी नै तलब सारू दाजी कुड़ कुड़ता रै छा। एक चपटो चीकणो चट्ट भाटा को थानक बी बखारी कै नीचे ई छो. जे दन भर रूपयां की मार खातो रै छो।
चूंतरा कै नीचे एक बखारी की नांई को आल्यो छो। जी में अछ फर आग ओछ्यां रै छी। आबा-जाबा हाला, पीसा कोड़ी लेबा-देबा हाला दाजी का हुक्का में आग कुरालर हुक्का का माथा पै धरता ई रै छा। पाड़ा-ग्वाडा़ में कोई कै चूल्हा की आग बुझ जाती। तो दाजी का बखारी नुमा आल्या में सूं आग ले जावै छा। ई तणा सूं पीसा-कोड़ी, नाज-पात अर आग को परमानेन्ट ठकाणो दाजी मदन जी कै यां ई छो। ओछी काठी, सांठो डील, फाटी ब्यावां, रेजी को पंज्यो, रेजी की बगल बंडी, पेला रंग की मैल सूं चुकी जोधपुरीजी तरज की पागड़ी बांध्यां। जीवां कान पै टकी कलम, पगां में सरपटा। बोली में मसरी की डली ज्यों मीठा। सौ का हजार, पांच सौ का पनदरा सौ करबा में घणा पाका छा दाजी मदन जी। ई लेखै लछमी का घणा प्यारा पूत बण ग्या छा। तजोर्या अरडाट करै छी। पांचू खायां नाज सूं सगन भरी छी। धाड़ा हाला तीन बर्यां अस्तार चपका ग्या। एक बार तो ढोल बजाता-बजाता बन्दूक्यां चलाता गांव में ई आ धस्या। सोबो नै पड़्यो छो। लोग-बाग धूण्यां पै ताप र्या छा। सगला गांव हाला नै धार्या, बन्दूक्यां सूं मुकाबलो कर्यो छो। दो च्यार गांव हाला का माथा बी फूट्या पण गांव हाला की एकठ की मारी धाडा़ हाला भाग छुट्या।
दाजी मदन जी की चोरां की मारी अस्सी फूंक सरकै छी। कै डर की मारी आस-पास का गांवां में उगाई की तागीदी करबा बी नै जावै छा। वां की माई ई रेखकी में बैठर उगाई करबा जावै छी। ई लेखै माई को बी नर बर्यां चोरां सूं मुकाबलो होयो। चोरां नै माई का नाम-कान बूच्या कर मैल्या छा। मदन जी बोरा के दो बेटा अर एक बेटी छी। बडो मोहन, छोटो सोहन, बेटी बिमला। मोहन सात कत्या बां पढ्यो छो। सोहन सोला कत्याबा पढ्यो। बोहरा जी नै सोहन ऊंची पढाई करबा सहर में खनायो छो। ऊंची पआई होबा सूं ऊंची नौकरी णें आयो। अंगरेजा की नाईं रैबो-बोलबो, खाबो-बहीपो सीख ग्यो। अर सहर में ईब स ग्यो। फैली-फैली तो होली दवाली बार-थ्वार में गांव में आतो जातो रै छो। पाछै गांव में आबो-जाबो नपट ई छोड़ द्यो। ऊंकी घरहाली अर छोरा-छोर्यां नै गांव में नै आसंगै छो। वे बीं ऊंची पढायां पढ ग्या छा।
विमल को ब्याव दाजी नै घणा ठाट-बाठ सूं कर्यो। सासरा हाला बी सांछा मल्या। हाथी कै होदै लाडो परणबा आयो छो।
मोहन बोहरा जी को टींकायत बेटो छो. पेटा को साफ, सूदो-सादो, भगवान को भगत। बोहरा जी का काम मं मोहन ई हात-बटाई करै छो।
पण बोहराजी की बेईमानी ऊं कै कती आसै नै आवै छी। ई लेखै बोहराजी के अर मोहन के कम ई बणै छी। ऊमर सारू बोहराजी थक ग्या। अब कै म्हांका गांव में लग-लगता घणा ब्याव होया। झीमबा-चूंटबा को बोहरा जी कै घणो चाव छो। वां को सिद्धान्त छो कै राम नाम जपना, पराया माल अपना। जे खाबो-पीबो अणमाफ छो। बोहरा जी ब्यावां में डटर खाग्या। जी सूं बेमार पड़ ग्या। नतकै घणा सारा गोदड़ा बगाड़बा लाग ग्या। गीता का सार सारू करमा का फल भोगबा लाग ग्या। धीरां-धीरां खाट को अस्यो पायो पकड़्यो। क छ मीना में मर्या ई खड़्या। बोराजी तो सरग पधार ग्यो। सोहन नै तो वां का पूण मीना का अछूता पाछै गांव की सूरत बी नै देखी। सगलो काम काज मोहन नै ई संभालनो पड़्यो। मोहन भगवान को भगत होबा सूं घणो टेम तो भगती में देतो। ब्याज-बट्टो, बाडी-वाडी लेबा में ऊंको घमो जीव दुख पावै छो। पण मन मारर धन्धो करण पड़तो।
मोहन कै बी दो बेटा छा। कसन मुरारी अर जगदीष दो छोर्यां सकुन्तला अर साबित्री। दोन्यूं पोत्यां को ब्याव बोराजी ई कर ग्या छा। कसन मुरारी को ब्याव मोहन नै कर्यो। जगदीस च्यार-पांच बरस को छो। कसन मुरारी को ब्याव होता ई बाप नै कारबार बेटा ई संभल द्यो। अर आप साधू-संता की सेवा अर भगवान की भगती में रम ग्यो। मोहन जी मदन जी बोहरा कै हरणाकुस कै फहलाद ज्यों नींवट्या छा। वां सूं गांव में कोई बोहराजी नै खैछो। सगलां गांव का मनख भगत जी खैर बतलावै छा। खैणावत छै कै जस्या बोवेगा उस्या ई काटैगा। मोहन जी कै कसन मुरारी जी बी अस्याई बेयचा छा। सभाव में, उणयारा में द्या-भाव में, बाप कै ओलखै आवै छा। समून कसन को ओंतार पढ्या गुण्या काक कै जतना। अक्कल का फूतला, रूपका डला, रैणगत में राजा का कंवर ज्यूं. मजाज का घड़ा का ठंडा पाणी ड्यूं गरब-गुमान सूं कोसा दूरै बड़ा-बूढाको मान करता। गरीबां का मसीहा। पढाई सारू घणी ऊंची नौकरी घर बैठ्यां ई आई। पण ठोकर मार दी अर गांव में बस ग्या। कसन मुरारी जी छो तो बाप कै जस्या पण बाप की नांई साधू-संता में बैठे-उठै कोई नै छा। यूं वां को मन साधू-संता सूं बी घणो ऊझलो छो। जद म्हाका चौखला में काल नै मूंडो खोल्यो। तो मनख्यां का मरबा को संतड़ौ माच ग्यो। तीन बरसां सूं काल नै झेलतांझेलतां मनख्यां की छात्यां पाकगी। म्हतार्यां नै टाबरां कै तांई सूखी छात्यां रबड़ाबो सरू करद्यो। अस्सी बर बगत में हाडां का बण्यां पींजरा मनख्यां की आसा की नजर्यां बोहराजी की खायां पै गडगी। मूंडो फाड्या काल का गाल नै देखर कसन मुरारी जी सूं र्यो ग्यो वां को कालज्यो नीचै सूं ऊपर तांई हाल ग्यो। गरीबा ंकी भूख वां की भूख बणगी। जस्यां भूखा बालकां नै देखर बाप नै नींद नै आवै। उस्यांई कसन मुरारी जी की समून रातां आंख्याई आंख्या में कढबा लागगी। घणो बच्यार करता। एकदन तो वां सूं र्यो ई नै ग्यो। घणी गाढी धारली कै छावै म्हारो सारो कारबार खूण्ये लाग ज्या। पण भूख सूं मरबा हाली जनता नै तो बचाणो ई बचाणो छै। ऊं रात भागोट्यां ई माध्यो ग्लाल बलायो अर बोल्या-जा सगला हाली ग्वाला नै बुलार ला। तड़कै दन उग्या खायां का मूंडा खोलणा छै।
कसन मुरारी जी नै गांव बलाई बलायो अर गांव में हेलो पड़ाया कै तड़कै भूखा मरता मनख अट्टा की खायां पै आ जा ज्यो रै भाई ओ...। सदा बरत बटैगो बोराजी खायां का मूंडा खुला र्या छै।
खायां का मूंडा खोलबा दी खबर सगलां चोखला में बाल नांई फैलगी। लोग बाग पंज्या, सावल्यां, ठोपला, जे पानै पड्यां खायां पै नाज लेबा आ ग्या। कसन मुरारी नै सदा बरत बाटंबो सरू कर द्यो। मोहन जी बेटा की दान-सीलता नै देखर घमा राजी होया। वां को मन को कंवल-कंवल, अमगबा लाग ग्यो। भगवान नै धन्यावाद देबा लाग ग्या। हे भगवान थारी कतनी रपा छै। ज्ये थन्नै म्हारै तांई अस्यो दानी बेटो द्यो। पण घरनै कसन मुरारी जी की माई नै लड़बो अर लुगाई नै रूसबो सरू कर द्यो। दोनी आछी तणै बीफरगी। लुगाई खैबा लागी कै सगली खायां खाली कर देगा। तो बोरगत खाई सूं चलावैगा?
कंगला ई बणर रैगा कांई? होई ज्येई होई। री जी नै ई रखाणो। अब तो खाई-खास बन्द कर द्यो। दाजी की कमाई क्यों आग लगाबा बैठ्या छो। सगली खायां खाली कर देगा तो बोरगत खाई सूं चलावेगा? अब तो मान जावो पाछै पछतावोगा। काचो क्वांरो साथ छै। छोरा-छोर्यां नै खाँई सूं परणावोगा। घर को खरचो खांई सूं चालैगो? बोराजी को ऊंचो नांव डूब जावैगो। बाप तो बाबाजी होग्या, थां म्हानै बाबाजी करबा पै बैठ्या छो। पण कुसन मुरारी जी की कान सूं सुणता अर दूजा कान सूं खाडता र्या। सगली ऊंची-नीची बातां नै आमा का रस की नांई गटकता रय्‌। या बात वां कै कस्यां गलै उतरै कै वै नाज सूं भरी खायां नै देकता रै अर भूखा मरता मनख्यां नै ऊबा-ऊबा देखता रै।
अस्या छा कसन मरारी जी ज्यां नै आस-पास का चौखला तगात का भूखा मरता मनख्यां की जान्यां बचाई छी।
भगवान की मनख्यां का सत की पतला करै छै। जीं को परमाण छै। कै दूजै साल अस्यो पाणी बरस्यो कै तीन बरस का काली की भरोती एक बरस में ई पूरी कर दी। अतनो धान नीपज्यो कै लोरा-बागां का खोटा-मंडीला अरडाट करबा लाग गया. मनखां का मूंडा पै नराणी आगी।ष खै छै कै मनख बरी बगत पै सायरो लगाबा हाला नै खदी नै भूलै। ई सारू लोग-दण्या नै कसन मुरारी जी की खायां बना मांग्या ई पाछी भर दी। अर भूखी का मूंडा सूं बचाबा हाला कन मुरारी जी नै गांव का लोग-दणी भगवान कसन को ओंतार ई मानबा लाग ग्या। कै कसन भगवान नै तो अन्दर राजा का कोप सूं मनख्यां नै बचाबा कै लेखै गोरधन परबत चट्टी आंगली पै उठायो छो। पण म्हांका बोहरा कसन मुरारी जी नै नै वांव का ई कांई सगला चोखला का मनख्यां नै बचाबा कै लेखै दाजी मदन जी की भरी खायां का मूंडा खोल द्या छा। अर जिसका जिसको अरपण हालो हस्याब कर द्यो छो। पण ऊं दीनानाथ नै बी परमाण दे द्यो कै गरीबां की सुणो ऊं थां की सुणैगो थां एक पीसो देगा ऊ तजोर्यां भरेगो।

अस्सी करी गुलाब नै

गांव तो घणो छोटो, पण नेतागिरी में घणो आगै छो। नेता की दम पै म्हांको गांव में मंदरसा को झांज्यो रूप ग्यो। आस-पास का बड़ा-बड़ा गांव झांकता का झांकता ई रैग्या। मन्दरसो तो खूट ग्यो। पण आठवीं की ठाम पै पांच जमात तांई को खूट्यो।
मन्दरसा में पढ़बा हाला छोरा तो दो सौ हो ग्या। पण छोर्यां पनदरा-बीस ई होई। च्यार तो म्हारी ई कक्सा में छी। गुलाब, सान्ती, द्वारक्या अर बिमला। छोर्यां सगली अकदाई की। पण गुलाब की ऊमर सब छोर्यां में फोरी छी। गुलाब ऊमर में तो ई फोरी छी। पण पढबा में म्हां सगली छोर्या नै एक आडी मेलै छी। रंग रूप में भी गुलाब-गुलाब का पसब ज्यों छी। अठ फैर मुलकतो सो मूंडो ऊंका मोती सा चमकता दातां नै बतातो रै छो। घर आछ्यो खातो-पीतो एक भाई छो जग महोन। पांच बरस की ऊमर में जगमोहन तो भगवान नै बला ल्यो छो। काक कै तीन बेटा ई बेटा का बेटी को खुर्यो बी नै खर्यो छो।
गुलाब परवार में अकेली बेटी छी। तीन फीड़्यां सूं ई परवार की पोली क्वांरी चालरी छी। ई लेखै गुलाब परवारी में घणी लड़ी-लाड़ली बेटी छी। दादा-दादी आंख्या ई आंख्यां में रखाणे छा। काका-काकी घणा लाड सूं गुलबो खैर हांको पाडता।ष दादी तड़कै ई हात में चाय सो सकरो लेर पालक्या पै सूती गुलाब नै जगाबा जाती, धीरां-धीरा मूंडा पै सूं सावली को पल्लो अटार खैती बेटी उठ अब तो चाय पीले। घणा लाड सूं माथा पै हात फेर-फेरर ऊ नै चाय प्वाती। फेर खैती बेटी हात मूंडा धोलै मन्दरसा को टेम होग्यो।
गुलाब होणा का चौका में जसी गुलाब चावै वा ई स्याग बणै। दन में दो बर्यां गुलाब भांत-भात का लत्त फेरै। खदी-खदी माई थापड़-थोल्यां लगा दे तो दादी काल्जाय कै चपकालै। चावै काकी पुचकार गोदी में बठाण ले। खदी-खदी गुलाब कै ताव-बुखार बी आ जावै तो सगला घर हालां ऊं कै सराणै बैटर रात खाड लै।ई तणा गुलाब पै एक फूल चढैर एक फूल उतरै पढबा में सब सबसूं आगै होबा सूं मन्दरसा में बी ऊं को घणो मान। खातो-पीतो घर होबा सूं अर लाड प्यार में पलबा सूं गुलाब को डीलडो बेगोई गदरा ग्यो। तांबा बरणी देह तेरह बरस में अछठारा बरस ज्यूं लाग बा लागी। अणगट-पणगट की लुगायां गुलाब नै देख-देखर मूंडाब जोडबा लागगी। एक दन क्वा पै चमेली की माई नै गुलाब की माई सूं मूंड़ा-मूंड ई खै दी। अरी गुलाब की माई थां नै नींद कस्यां आवै छै बणा? घर में मोट्यार बेटी क्वांरी बैठी छै। अर थां सरड़ा-सरड़ा सोवो छो? गुलाब की माई तो सुणतांई भाटो होगी। ऊं की तो जीब ई तालबै बैटगी। कांई बात ई नै उपजी। भ्हड़ला ई भ्हडला में जल-बलर राख होगी।ष वा तो फैली ई दादी अर काकी पै घणी झूंझयां खावै छी। कै थानै छोरी घणी अलोल कर म्हैली छै? काम को तण्यों बी नै तोड़े। बगाड़र धूल करदी। लक्खण कर सीखेगी। डाईजा में लारां थांई चल्या जा ज्यो। नै तो माई नै खूण्ये ई बठाण्यां रखाणैगी। पण गुलाब की दादी लाड में गुलाब की माई का ओलमा नै सुणर पी जाती।
पण आज चमेली की माई का बोल नै गुलाब की माई को रोस में आग में घी पटकबा को काम कर द्यो। वा क्वा पै सूं बेगा-बेगा उतावला पगा सूं घरनै आर परांडी बेवड़ो ल्यो। अर झूंझल खार सासू सूं बोली।
थां तो घरां में बैठ्या रो छो. अर लुगायां म्हारै तांई देखता ई मूंडा जोड़ै छै। अर आज तो चमेली की माई नै म्हारै सामै मूंडै ई खैदी। कै थां नैं नींद कस्या आवै छै। थां नै तो लाड की मारी होली कर मली छै. ऊमर तो कोई नै पण अलोलपणा की मारी घणी बड़ी लागै छै। अब तो थोड़ा-घणा लक्खण बी सखाओ। पैलां कै घर जावैगी। घमओ लाड बी आछ्यो कोईनै। सारै दन उलाला मारै छै। थां सगलां नै तो कान में तेल पटक मल्यो छै। मंदर पै बठाण दीद्यो मीरा बण जावैगी। थां तो सगला नौ हात की मूसोड़ में सूता रो।
गुलाब की माई बोल्या ई जारी छी। गुलाब की दादी अर काकी सुण्याई जा री छी। कोई नै बी ओड़ो नै द्यो। ई लेखे गुलाब की माई को रोस ओर भड़क ग्यो। ऊनै अपणी बात मनवाबा को एक गेलो ओर खाड्यो। अर वा बोली-कै देखो सास्त्रां कै मुजब कन्यादान को फल फोरी ऊमर में ब्याव करबा सूं ई लागै छै। बेटी ब्याव कै खावै तो आगी। गुलाब करी दादी नै गुलाब की माई का ओलामा-थोलमा को तो काई बी असर नै होय। पण सास्त्रां की बात ऊं का माथा में घूमर देबा लागगी। संझया की सगला मनख चोबारा में रोटी खाबा भेला होया रोटी-ओटी खायां पाछै ऊंकी दादी नै गुलाब की माई की बात सबकै सामै पटकी।
काको तो ब्याव को नांव लेता ई उखड़ पड़्यो।ष ऊ तो सफा ई नट ग्य। कै हाल ब्याव की कांई उतावल छै। कांई छोरी थां का माथा पै बोझ हो री छै। बारा-तेरा बरस की छोरी छै। अर थांनै बरणाबा की उतावण मैल दी। चोरी का खाबा-खेलबा का दन छा। पढरी छै, पढबा में घणी हुस्यार चै जमानो कतनो आगै बध ग्यो। सहरां में तो पच्ची-पच्चीस बरस तांई बी परणाबा को नांव नै ले। गुलाब को बाप तो ब्याव का नांव सूं छानो-मूनो हो ग्यो। बोल्यो ई कोई नै। दादा-दादी कै सास्त्रा की बात पाकी जमगी। माई ्‌र काकी मरदां का मूंडान् की आडी न्हालती री।
काका कै नटका की घर में घोर संकट आग्यो छो. ओर सगला तो गुन्नीस-बीस एक जस्या ई बच्यारां में बंध र्या छा। ई लेखै लोकतंत्र का बहुमत कै आगै अल्पमत काका का बच्यार नक्कार खाना में तुती की आवाज सूं महत्वहीन ई र्या। सगलां नै काको घमो ऊंचो-नीचो पटक्यो। हार खार काका नै बी बना मना सूं गुलाब का ब्याव की हामल भर ई दी।
सगला नै मलर यो परसताव पास कर्यो कै छोरी आस-पास का गांव में ई परणावां तो आछी रैगी। आपणी छाती दबी रैगी। दूरे देंगता तो आयो को मूंडो नै ग्या की पूछ हालो हस्याब हो ज्यागो।कुदरत को खेल कोई की समझ में नै आवै। होली होवे ज्ये होर ई रै छै। एक दन बगड़ेल सोहन्यां की ममाई अर ऊंकी भाीली ग्यारसी गुलाब होणआ कै बारणै गर्याला में होर खडरी छी। जद गुलाब की दादी बारमै चूंतरी पै बैठी-बैठी जरदो सूंग री छीं वां दोन्यूं न देखर गुलाब की बा बोली-क्यां सूं आ र्यो छो क्हां ग्या छा? आओ जरदो सूंग जाओ, बेठो सांस लेलो, वे दोन्यूं बा की मनवार करता ई चूंतरी बै बातां करबा बैठगी।ष अंठी ऊंठी का समाचार जाण्यां पाछै लुगायां की टेव सारू वै आमी-सलामी घर की फड़ै बांचबा लागगी। बातांई बातां में गुलाब की सगाई की बात चालगी। ग्यारसी नै गुलाब की दादी सूं बूजी सणी। कै थानै गुलाब की सगाई-पथाई कर दी कै। अब तो थाकै बी गुलाब ब्याव कै खावै होगी। दादी बोली-हाल तो खां बी नै होई सगाई-पगाई छोरो देख र्यां छा। ग्यारसी झटकै सेक बोली-
कांख में छोरो अर गांव में हेरो कांई कर र्यो छो। यां कै बी सोहन्यां की सगाई नै होई। ब्याण्यां बण जावो। जोड़ी महताऊ छै। छोरो सहर में पढ रप्यो छै। छोरी दूरै बी नै जावैगी। दो कोस पै ई सासरो रैगो। रोटी वा खावैगी ता पाणी थां कै य्हां आण प्येगी। सासू घणी सपातर चै। गंगा को धोरो। बेटो बी अकलोतो छै। दोराण्यां-जठण्यायां को पंपाल बी नै रैगो। म्हारी मानो तो छोरी सुख पावैगी थां कै बी घणी लाडां की बेटी छै। नभज्यागी। एक नणद छै ज्ये बार-थ्वार की ई तो फावणी छै।
दादी कै ग्यारसी की बातां घुटक की नांई गले उतरती गी वा बोली-बूंझगी देखां। म्हांरी कांई चालै छै। बापर काको करैगो वा ई होगी। ग्यारसी की ओर चढ बणी। बोली थां कस्सी बातां करो छो भाभीजी? थां ई तो घर का मालक छो। थां की राय तो सबसूं ूबर छै। ऊकै बना तो घर को पानड़ो बी नै हालै। वे तो दोनी जण्यां ओर बी गुलाब की बां की अडायां-बढायां की बातां करर चलीगी।
गुलाब की दादी का माथा में ग्यारसी की बातां सुणर गुलाब का ब्याव का बच्यार अब घणी जोर सूं घूमंर देबा लाग ग्या। कै कद सारा भेला होवै अर कद सल्ला सूत करां। अर ब्याव को सरलाओ आगै चलावां। काको गांव ग्यो छो। च्यार-पांच दन पाछै गांव सूं आयो। संध्या की रोटी खाती बगत सगला भेला होगा। रोटी खायां पाछै दादी नै ग्यारसी की बात सोहन्यां सूं सगाई की सगलां कै सामै परोसी। कै छोरो सहर में पढ र्यो छै। अकलोतो छै। जेठ-देवर बी कोईने। आपणै लाडली छोरी छै। ई सूं पांच मनख्यां को काम बीनै होवैगो। आद-बाद बातां समझाई।
काका नै तोमाई की बात सुणतांई आंड लगाई। कै छोरा की पढाई पूरी हो जाबा द्यो। आपणा पगां पै ऊबो होयां बना म्हूं तो सोहन्यां के सगाई कैरबा का पख में कोई नै।
पण दादी बोली-भाया पढाई एक दन को काम कोईनै वा तो धीरां-धीरां होती रैगी। आपणै तो बेटी मोखम हो ज्यागी। म्हहांको कांई पतो मर ई जावां। पोती को कन्या-दान तो जीवतां ई करल्यां। ब्याव की मोर छड़ी देखबा की घणी मन में छै। फैर छोरी बी नजीक छै पढणो-गुण्यो। दूरै छोरो मलगो तो छोरी दूरे परणाणी पड़ैगी। काको बड़ा भाई का मूंडा की आडी झांक र्यो छो। पण बडो भाई तो हूंकै नै पावंसै छान-मून सल्ला की नांई ऊबो छो। भाभी का बच्यारां सूं ऊ फैली वाकब छो। कै भाभी बेगी ई ब्याव करबो छावै छै। या जाणर कै कोई बी म्हारा बच्यारां कै सायरो देबा हालो कोई नै ई लेखै बगत की बाण जाणर काक नै बी गुलाब का ब्याव की हामल सोहन्यां की लारां करबा की हामी भरली।अब तो लाडां की बावरी, रूपां की सांवठी, चन्दरमा नै लजाबा हाली, स्याथण्यां कै मन भावा हाली, पसब जस्यां मुलकबा हाली, गुलाब कै सारै जाबा का बंधाण बंध ग्या। बात पाकी होगी। नैगी जी बलाया। पेली पानड़ी कै हलद का पेला छांटा लाग ग्या। नेगचार लेर नेगजी गुलाब कै सासरे चैल खड्या। घर आंगणा लप ग्या। चौक मांडण्यां मंड ग्या। तेल बंद्याका का सारा सरंजाम हो ग्या। गुलाब का गुलाबी डीलड़ा पै दूजो रंग चढाबा सारू सीक्सा-पीठी चढबा लाग ग्या। लाडली नै लडाबा सारू लाड्यां-बन्यां सुवाग-कामण गाबा की झड़ी लागगी। गुलाब कै लेखै नुवा-नुवा लत्ता, पसबा की माला सूं हात-गला लद ग्या। नतकै चमकती खोल सूं गुलाब का करमटा चमक ग्या। गुलाब का मनड़ा पै बी हरक की गोटी लटक गी। हली-मली भायल्यां सूं बतां करबा की कल्यां तड़क गी।
गुलाब कांई जाणै छी कै ऊं का सुख का समन्दर सूखबा का बंधाणबंध र्या छै। करमा का छेवड़ा आगै आबा हाला छै। पसबा जस्सी गुलाब का कालज्या में कांटा का बेजक्या होबा हाला छै।
ब्याव को सं दन आग्यो। लाडो धूम-धाम सूं तोरण पै आयो। पाड़ा-ग्वाड़ा अर गांव का मरद-बायरां छोरा-छोरी लाडा नै देखंबा आया। सोहन्या नै जाणबा हाला मनख तो वां ई मूंडा जोड़बा लाग ग्या। अर बगड़ेल सोहन्या का पाना वां ई छानै-छानै खोलबा लाग ग्या। छोरी नै क्वा में धकेल देता वे ईछोका छा। छोरी का तो भाग समून ई फूट ग्या। दुनिया दो मूंडा की चकलूंड छै। गुलाब नै परणी ज्यां तांई बी जीव खायो। अब परण री छै, तो बी जक नै लै। लाडो तोरण सूं नमट्यो। पंडत नै दौड़ लगाई। मायां में बठाणर लाडो बेगो सोक फेरां में बलायो। पंडत नै दूजी ठौरां भी जाणो छो आडा-ऊंला मंतर बोलर फेर नमटाया। लाडो मरे छैवा लाडी बामण का दो टका पाका। तड़कै ई लाडी बदा कर दी। जान की गाड्यां जपगी। माई-बाप, दादा-दादी, काका-काकी सूं बछटबो भायल्यां को साथ छूटबो घणो करड़ो रै छै। गुलाब की आंख्यां झरणा ज्यूं झरबा लागगी। माई-बाप, दादा-दादी, काकी-काकी, दादा-दादी के छात्या फाटबा लागगी। पण बेट तो परायो धन छै। खुण की बेटी फीर में री छै। आज नै तो खाल सासरै जाणओ ई पडै छै। पाड़ा ग्वाडा की बायरां नै दादी, भाई, काकी घणी समझाई। सबर आग्यौ। मन पाछो पड़्यो। गुलाब कै सासरै चौक मंडग्या, ढोली आग्यो। गुलाब की सासू नै आरत्यो करर सूना की लावण हाली लाडी घर में ली।
गुलाब कै तो सुहाग रात कै दन सूं ई आंख्यांनै आंसूं को गेलो खोल द्यो। दारू का नसा में द्युत्त सोहन्यो त्वांला खातो पालक्या पै ऊंधै मूंडै दच्च दणै से आर पड़ग्यो।
पसबां बछी सेज अद उल्टी सूं लथ-पथ होगी तो नुवा लत्ता अर गहणा-गांठा खोलर मूंडा कै लूगड़ा का पल्ला को गाठो ढाटो बांधर गुलाब नै सारी सुहाग रात उल्ट्यां सोरतां मनाई।
अब तो सोहन्यां को नतकै संझयां को नीम बणग्यो गुलाब फोरी ऊमर में ई स्याणी-समझणी बणगी। खसम नै स्वा की नांई पढाती। दारू सूं घर को होबा होला सत्यानास बताती। पण सोहन्यो गाल्यां, लातां, घुम्मा अर, जे हात पड़ै डण्डा सूं गुलाब ई ज्बा देतो। सोहन्यों नै पढाई तो परण तांई छोड दी छी। आधो पढ्यो घर का ई खावै जसी बात होगी। ससरा के धनस बाय होगी अर मरग्यो। अब तो घर को खरचो-पाणी चाल बो बी मोसर होग्यो गहणा-गांठा, थाली-ठीकरा बकबो सरू होग्यो। दारू को काम रूक बोई नै चावै। घर का छावै भूखा मरै। दारू नै आवै तो लुगाई कुतेरा खावै।
थोड़ा दना पाछै सासू बी बेटा का भूंजा की मारी रामजी की प्यारी होगी। अब तो गुलाब को दुख सुणबा हालो कोई नै र्यो। चन्ता अर दुख की मारी गुलाब सूखर कांटो होगी। पसब सरीखा डीलड़ा पै लूलर्यां पड़गी। दांत बारै खड ग्या। आंख्यां खाडा में घसगी।फीर में बाप की एक्सीडेन्ट से मौत होगीओ। दादी-दादी फैल्याई मर ग्या छा। माई के बाप अर बेटी का कलेस की मारी टी.बी होगी। ई बीचा में गुलाब कै दो छोरा बी होग्या छा। गुलाब के फीर को सायरो बी नमट ग्यो। काको बेटया के आसूरतो होग्यो छानै-छानै खदी सायरो लग पातो। जद उधार-पुधार का बारण बी बुजग्या तो गुलाब मेहनत-मज्यूरी पै आगी। पण ऊं भापड़ी को मज्यूरी करबो बी दूबर होग्या। ऊ खोड़लो बेम करतो। मज्यूरी करर दनथ्यां की घरनै आवै को फैली गाल्यां खा वै पाछै चूल्हो बालै। रोटी पोर छोरा-छोर्यां नै ख्वाबा की करै तो सोहन्यो बीचा में ई थाली पसार बैठ जावै। दनमें एक-बाद चीज बेचर पव्वौ चढा आवै अर सारै दन पड्यो-पड्यो नींद में सरणा वै। सतवन्ती गुलाब फैली सोहन्यां नै ख्वाबै पाछै आप खावै। तड़का की एक दो रोटी छोरां कै लेखै कटोर दान में धरर छींका पै टांक दै पाछै मंज्यूरी करबा जावै। यो काम गुलाब को रोजीना को हो ग्यो। जी दन मज्यूरी नै मलै ऊंदन गुलाब भूखी रैज्या।
एक बार गुलाब ई लगलगता पनदरा दन तांई मम्जूरी नै मली। नता कै जावै पण पाछी आ जावै भूखां की मारी पेट पातालां बैठ ग्यो दो पांच, आठ दन जस्यां-तस्यां छोरां को तो काम चलायो पण ्‌ब तो छोरां की बी दसा बगड़गी। भूखां की मारी सूखर कांटा होग्या, पेट पाताल्यां छैंट ग्यो, आंख्यां में जीव आग्यो। और दना तो कटोर दान में एक-दो रोट्यां रै छी। दोन्यूं बांट-बूंटर खा ल्ये छा। पण ऊं दन तो गास की बास बी नै बची गुलाब घणी दूखी होई। पण दुख खुणकै आगै रोवै। अण कमाऊ घणी कै तो फरको ई नै पड़ै। छोरा मरोक लुगाई मरो।
नतकै की नांई ऊं दन बी गुलाब मज्यूरी करबा गी। छोरां नै घर में बठाण गी। छोरां कै तांी बसवास बंधागी कै कटोर दान में रोटी धरी छै। म्हूं आऊंगी जद थां कै तांई रोटी ख्वाऊंगी। ज्यां तांई था दोन्यूं भाई खेल ज्यो। माई तो मज्यूरी करबा गी छोरां नै भूख की मारी खां को खेलबो याद आवै छो। दोन्यूं भाई टकटकी लगा छींका की आडी झांकता र्या। कद माई आवैगी कद म्हांकै तांई कटोरदान में सूं खाडर रोटी ख्वावैगी। ई बसवास सूं दोन्यूं भाई खदी कटोरदान की आडी खदी थोड़ोसोक आह्ट आता ई बारणा की आडी झांकता का झांकता ई र्या।
करम की बात ऊं दन बी गुलाब कै तांई काम नै मल्यो। नफाफड पड़र घरनै पाछी वावड्याई। छोरा माई नै देखता ई घणा राजी होया। वां का बसवास नै जीबा को सायरो दै द्यो दोन्यूं माई की आडी सेली-सेली आंख्यां सूं झांक्या अर माई सूं बोल्या।
जीजी रोटी। गुलाब का म्हड़ला में दुख को समन्दर तो फैली हलोला मारर्यो छो। छोरां की भूख नै और उफाणो अणा द्यो। भूख की मारी गुलाब का हात-पंगा में तंत तो छो ई कोई नै मोर-पेट नै एको कर मल्यो छो। फेर बी काम सारू घणा पापड़ बेल्या, घणा थापड़ा कर्या पण काम मलबा तो नांव ई नै ले र्यो छो. अब तो ऊं का सबर की सीमा का अन्त होतो जा र्यो छो। दुख का ऊंड़ा समन्दर मे डूबी गुलाब नै झूंझल खार कटोरदान छींका पै सूं उतारर नींचे फांक द्यो अर बोली- ल्यो खाल्यो रोटी। जमी पै रीतो पड्यो कटोरदान मै घर में मौत को टंकारो बजा द्यो।
रीतो कटोरदान देखतां ई छोरां का बसवास की पाल टूटगी। मौत नै हेलो पाड्ल्यो। दोन्यूं भायां नै आगै-पाछै फूतल्यां फेर दी। माई फाटी आंख्यां सूं दोन्यूं भायां नै मरता देखती री। बाप दारू में धत्त सतरंग्या सपना देखतो र्यो।
अब तो गुलाब का दुख का समन्दर नै कार तोड़ दी। वा घर कै बारै खड़र उतावल में गेलै लागगी। ऊ नै गेला में ई बेगो फूगबो को अन्त ज्याम सोच ल्यो। चालती-चालती नै लूगड़ा को लांबो घूंघटो खाड्यो अर ढूंड़ी में गाढी गाती मार ली। जू सूं ऊं की आबरू नै दीखै। घाघरो को खाखटो मारर दोन्यूं खाखटा का खल्यां में छोटा-मोटा जस्या भाटा-डोल्या मल्या भरती-भरती बाण गंगा की पेली तीर चलीगी। तीरां पै आर अठी-ऊंठी न्हालर तीरां का बड़ हाला ऊंडा क्वा में अकसमचै ई छलांग लगा ली। या सारी लीला ऊ नै घणी उतावली में करी। वा उतावल कर बी क्यों नै ऊं को दोन्यूं बेटा भूखा मरता माई की बाट न्हाल र्या छा। ऊ नै कटोर दान में सूं खाडरवां कै तांई रोटा खाणी छी।

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